Dear friends ,
Keeping in view the prevailing communal atmosphere , I have authored few lines in the praise of Indian Constitution, giving special emphasis on social and communal hormony and on vedantic principle of onness of God . It is in the poem form in Hindi and I have named it "Samvidhaan Chaalisa" . It's couplets have been arrenged as for as possible, in the sequence of chapters of Indian Constitution. I trust that it's chanting will definitly confer the results as indicated in it's last couplet. For those who can read Hindi devnaagri , it is posted here under. suggestions to make it more expressive, impressive and effective are cordialy invited.
संविधान चालीसा
जय भारत दिग्दर्शक स्वामी । जय जनता उर अंतर्यामी ॥
जनमत अनुमत चरित उदारा । सहज समन्जन भाव तुम्हारा॥
सहमति सन्मति के अनुरागी । दुर्मद भेद - भाव के त्यागी॥
सकल विश्व के संविधान से। सद्गुण गहि सब विधि विधान से॥
गुण सर्वोत्तम रूप बृहत्तम। शमित बिभेद शक्ति पर संयम ॥
गहि गहि राजन्ह एक बनावा । संघ शक्ति सब कंह समुझावा ॥
देखहु सब जन एक समाना। असम विषम कर करहु निदाना॥
करि आरक्षण दीन दयाला। दीन वर्ग को करत निहाला॥
हरिजन हित उपबंध विशेषा। आदिम जन अतिरिक्त नरेशा ॥
बालक नारि निदेश सुहावन। जेहि परिवार रुचिर अति पावन॥
जग मंगल गुण संविधान के। दानि मुक्ति,धन,धर्म ध्यान तें॥
वेद, कुरान,पिटक ग्रन्थ के। एक तत्व लखि सकल पंथ के॥
सब स्वतंत्र बंधन धारन को। लक्ष्य मुक्ति मानस बंधन सो॥
पंथ रहित जनहित लवलीना। सकल पंथ ऊपर आसीना॥
यह उपनिषद रहस्य उदारा। परम धर्म तुमने हिय धारा॥
नीति निदर्शक जन सेवक के। कर्म बोध दाता सब जन के॥
मंत्र महामणि लक्ष्य ज्ञान के। सब संविधि संशय निदान के॥
भारत भासित विश्व विधाता। जग परिवार प्रमुख सुखदाता॥
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रचि विधान संसद विलग, अनुपालक सरकार।
आलोचन गुण दोष के , न्याय सदन रखवार॥
मित्र दृष्टि से आलोचन , न्याय तंत्र सहकार॥
रहित प्रतिक्रिया द्वेष से, चितवत बारम्बार॥
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देत स्वशासन ग्राम ग्राम को। दूरि बिचौधन बेईमान को॥
दे स्वराज आदिम जनगण को। सह विकास संस्कृति रक्षण को॥
बांटि विधायन शक्ति साम्यमय। कुशल प्रशासी केंद्र राज्य द्वय॥
कर विधान जनगण हितकारी। राजकोष संचय सुखकारी॥
राज प्रजा सब एक बराबर। जब विवाद का उपजे अवसर॥
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जो जेहि भावे सो करे, अर्थ हेतु व्यवसाय।
सहज समागम देश भर, जो जंह चाहे जाय॥
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सबको अवसर राज करन को। शासन सेवक जनगण मन को॥
सब नियुक्त सेवा विधान से। देखि कुशल निष्पक्ष ध्यान से॥
पांच बरस पर पुनि आलोचन। राज काज का पुनरालोकन॥
जनता करती भांति-भांति से। वर्ग-वर्ग से जाति- जाति से॥
अबुध दमित जन आदि समाजा। बिबुध विशेष बिहाइ बिराजा॥
भाषा भनिति राज व्यवहारी। अंग्रेजी-हिंदी अवतारी॥
विविध लोक भाषा सन्माना। निज-निज क्षेत्रे कलरव गाना॥
राष्ट्र सुरक्षा संकट छाये। सकल शक्ति केंद्र को धाये॥
राज्य चले जब तुझ प्रतिकूला। असफल होय तंत्र जब मूला॥
आपद काल घोषणा करते। शक्ति राज्य की वापस हरते॥
अति कठोर नहिं अति उदार तुम। जनहित में संशोधन सक्षम॥
बिबिध राज्य उपबंध विशेषा। शीघ्र हरहु कश्मीर कलेशा॥
दुष्ट विवर्धित लुप्त सुजाना। आडम्बर ग्रसित सदज्ञाना ॥
बूढ़ भये सब साधन धर्मा। काल विरूपित सुन्दर कर्मा॥
राम राज लगि तुम अवतारा। लक्षण देखि वसिष्ठ बिचारा॥
जिनको जस आदेश तुम्हारे। सो तेहि पालन रहत सुखारे॥
समता प्रभु की उत्तम पूजा। तुम्हरो कछु उपदेश न दूजा॥
सो तुम होउ सर्व उर वासी। पीर हरहु हरिजन सुखराशी॥
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यह चालीसा ध्यानयुत, समझि पढ़े मन लाय॥
राज, धर्म, धन सुख मिले, समरसता अधिकाय॥
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॥ इति श्री भारत भाग्य प्रदीपिका संविधानसारतत्वरुपिकाच संविधान चालीसा सम्पूर्णा ॥
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