Shiva tandav strotram is very popular in All sects of Hindu (!) culture. It was composed by was composed by Ravan in the praise of Lord Shiva. Ravan was a known devout of Lord Shiva. Shiva Tandav is popularly known as dance of lord Shiva and it is believed that he performs it to destroy the universe. The verses of composition are called bhujangprayat chhand.
In the same style some verses have been composed in the praise of supreme energy with an imagination that the universe is created, run, destroyed and re created by cosmic waives originated by the dance of Supreme power/ energy that energizes Lord Shiva also. The composition as published on vidhiyog.blogspot.com is quoted herein bellow.
- Team Tripathi
" मूल प्रकृति क्रियमाण है, इसीलिए सृष्टि में गति है
अभी एक भोजपुरी गीत सुन रहा था जिसका आशय है कि " वह माँ हिडोले में हिल -हिल कर सारे संसार को हिला रही है, वह नृत्य करके सारे संसार को नचा रही है" । नवरात्रि के अवसर पर एक पुरानी अधूरी रचना पुन: प्रसारित कर रहा हूँ ।
किशोरावस्था में मुझे एक बार ऐसी अनुभूति हुयी कि, कहीं दूर अन्तरिक्ष में एक दिव्य शक्ति धीरे-धीरे अपना ब्रह्माण्डीय नूपुर झनका रही है और उसी के स्वर तरंगों से समूचे चराचर जगत का सञ्चालन हो रहा है ; यह सारा ब्रह्माण्ड उन्हीं स्वर तरंगों से उत्पन्न हुआ है , उसी से विस्तारित हो रहा है और उसी में लीन भी हो रहा है । उत्पत्ति और लय का क्रम निरंतरित है। इसी भावानुभूति में यह श्लोक स्फुटित हुए थे, जो अधूरी स्मृति के आधार पर यहाँ प्रस्तुत किए जा रहे हैं । व्याकरण एवं काव्य सम्बन्धी त्रुटियों के सुधार सुधी जनों से सादर एवं साभार आमंत्रित हैं । फिलहाल , टंकड़ सम्बन्धी विशेज्ञता के अभाव में कुछ त्रुटियां प्रत्यक्ष हैं जिनका सुधार किसी कुशल व्यक्ति की सहायता से शीघ्र किया जायगा ।
- डॉ वसिष्ठ नारायण त्रिपाठी
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(नोट: कृपया पहले छंद में "न" के स्थान पर "ण " पढ़ें )
द्वेषक्लेशहारिनीमनन्तलोकचारिनीम्मनोविनोदकारिनीम् सदामुदाप्रसारिनीम ।
पापतापनाशिनीमग्यानग्यानवर्तिनीम् नौमि पादपंकजं सुभक्तश्रेयकारिनीम॥ १॥
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विभागभागनूपुरमत्रिलोकरागरंजितमसन्चारितम्लयम्प्रियम जगच्चमोहितंकृतम्।
झनन्झनन्झनन्नवीनचेतना प्रवाहितं झकारशक्तिचालितम दधाति यो दधामि तम्॥ २॥
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वेदपाठ न कृतं न धर्म धारितं मया न योगयज्ञयुक्तिमान्नमामि केवलं सदा।
नमन्नमन्नमन्नमन्निरोध चित्तवृत्ति मे भवेद्देवि देहि मे भवं भयात् तत्पदम ॥ ३॥
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अनामयं निरामयं अरूपमं निरुपमं, शिवं शिवं शिवं शिवे करोति या सदाशिवम् ।
तयाशिवंमयाशिवं सुशब्दशक्तिसाशिवा विभातुपातु नो धियं जगत्शिवाय मे शिवम्॥ ४॥
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