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बहुपत्नी प्रथा
प्रश्नः इस्लाम में पुरूष को एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति क्यों है?
उत्तरः बहुपत्नी प्रथा (Policamy)से आश्य विवाह की ऐसे व्यवस्था से है जिसके अनुसार एक व्यक्ति एक से अधिक पत्नियाँ रख सकता है। बहुपत्नी प्रथा के दो रूप हो सकते हैं। उसका एक रूप (Polygyny)है जिसके अनुसार एक पुरूष एक से अधिक स्त्रिायों से विवाह कर सकता है। जबकि दूसरा रूप (Polyandry) है जिसमें एक स्त्री एक ही समय में कई पुरूषों की पत्नी रह सकती है। इस्लाम में एक से अधिक पत्नियाँ रखने की सीमित अनुमति है। परन्तु (Polyandry)अर्थात स्त्रियों द्वारा एक ही पुरूष में अनेक पति रखने की पूर्णातया मनाही है।
सम्पूर्ण मानवजगत मे केवल पवित्र क़ुरआन ही एकमात्र धर्म ग्रंथ (ईश्वाक्य) है जिसमें यह वाक्य मौजूद हैः ‘‘केवल एक ही विवाह करो’’, अन्य कोई धर्मग्रंथ ऐसा नहीं है जो पुरुषों को केवल एक ही पत्नी रखने का आदेश देता हो। अन्य धर्मग्रंथों में चाहे वेदों में कोई हो, रामायण, महाभारत, गीता अथवा बाइबल या ज़बूर हो किसी में पुरूष के लिए पत्नियों की संख्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया है, इन समस्त ग्रंथों के अनुसार कोई पुरुष एक समय में जितनी स्त्रियों से चाहे विवाह कर सकता है, यह तो बाद की बात है जब हिन्दू पंडितों और ईसाई चर्च ने पत्नियों की संख्या को सीमित करके केवल एक कर दिया।
भारत में 1975 ई. की जनगणना के अनुसार मुसलमानों की अपेक्षा हिन्दुओं में बहुपत्नी प्रथा का अनुपात अधिक था। 1975 ई. में Commitee of the Status of Wemen in Islam (इस्लाम में महिलाओं की प्रतिष्ठा के विषय में गठित समिति) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के पृष्ठ 66-67 पर यह बताया गया है कि 1951 ई. और 1961 ई. के मध्यांतर में 5.6 प्रतिशत हिन्दू बहुपत्नी धारक थे, जबकि इस अवधि में मुसलमानों की 4.31 प्रतिशत लोगों की एक से अधिक पत्नियाँ थीं। भारतीय संविधान के अनुसार केवल मुसलमानों को ही एक से अधिक पत्नियाँ रखने की अनुमति है। गै़र मुस्लिमों के लिए एक से अधिक पत्नी रखने के वैधानिक प्रतिबन्ध के बावजूद मुसलमानों की अपेक्षा
अधिक था। इससे पूर्व हिन्दू पुरूषों पर पत्नियों की संख्या के विषय में कोई प्रतिबन्ध नहीं था। 1954 में ‘‘हिन्दू मैरिज एक्ट’’ लागू होने के पश्चात हिन्दुओं पर एक से अधिक पत्नी रखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इस समय भी, भारतीय कानून के अनुसार किसी भी हिन्दू पुरूष के लिए एक से अधिक पत्नी रखना कषनूनन वर्जित है। परन्तु हिन्दू धर्मगं्रथों के अनुसार आज भी उन पर ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
पवित्र क़ुरआन पत्नियों की संख्या सीमित करता है जैसा कि मैंने पहले बताया कि पवित्र क़ुरआन ही वह एकमात्र धार्मिक ग्रंथ है जिसमें कहा गया हैः
कः फ़र्ज़ (कर्तव्य) अथवा अनिवार्य कर्म।
खः मुस्तहब अर्थात ऐसा कार्य जिसे करने की प्रेरणा दी गई हो, उसे करने को प्रोत्साहित किया जाता हो किन्तु वह कार्य अनिवार्य न हो।
गः मुबाह (उचित, जायज़ कर्म) जिसे करने की अनुमति हो।
घः मकरूह (अप्रिय कर्म) अर्थात जिस कार्य का करना अच्छा न माना जाता हो और जिस के करने को हतोत्साहित किया गया हो।
ङः हराम (वर्जित कर्म) अर्थात ऐसा कार्य जिसकी अनुमति न हो, जिसको करने की स्पष्ट मनाही हो।
स्त्रियों की औसत आयु पुरूषों से अधिक होती है प्राकृतिक रूप से स्त्रियाँ और पुरूष लगभग समान अनुपात से उत्पन्न होते हैं। एक लड़की में जन्म के समय से ही लड़कों की अपेक्षा अधिक प्रतिरोधक क्षमता (Immunity)होती है और वह रोगाणुओं से अपना बचाव लड़कों की अपेक्षा अधिक सुगमता से कर सकती है, यही कारण है कि बालमृत्यु में लड़कों की दर अधिक होती है। संक्षेप में यह कि स्त्रियों की औसत आयु पुरूषों से अधिक होती है और किसी भी समय में अध्ययन करने पर हमें स्त्रियों की संख्या पुरूषों से अधिक ही मिलती है।