Dear friends,
I am impressed from the blogs of Shri V.K.S. Chaudhary, ex advocate general and senior most advocate of allahabad high court. his blogs are worth reading for the friends who can read Hindi. Here are excerpts about democracy and republican system in ancient India :
महाभारत के शांतिपर्व (अध्याय १०७) में गणराज्यों की विशिष्टता और लक्षणों का वर्णन है। जो किसी के अधीन न थे, न उन्हें कोई पराजित कर सका। भीष्म ने उनके गुण-दोषों की चर्चा की है। युधिष्ठिर ने पूछा,
'गण (राज्य) कैसे फलते-फूलते हैं? आपसी फूट एवं विच्छेद से कैसे बचते हैं? मुझे लगता है, कैसे इतनी बड़ी संख्या के कारण राज्य के संकल्प गोपनीय रख पाते होंगे?'
भीष्म ने तब गणों की समृद्घि और वैभव का रहस्य समझाया। उन्होंने कहा,
'लोभ और ईर्ष्या ही गणों के अंदर, जैसे कुल में, दुश्मनी उत्पन्न करते हैं। यह विनाश की जड़ है। भेद एवं द्वेष गण के पतन का कारण बनते हैं। जो अच्छे गण हैं वहाँ ज्ञानवृद्घ परस्पर सुख का संचार करते हैं। उन्होंने शास्त्रों के अनुसार धर्मनिष्ठायुक्त कानून की व्यवस्था की है। वे गण उन्नति करते हैं, क्योंकि उन्होंने अपने पुत्रों और भाइयों (नागरिकों) को अनुशासन सिखाया है, उन्हें प्रशिक्षित किया है। वे कहते हैं, क्योंकि उनके यहाँ सदा सम्मेलन होते रहते हैं। उनमें जो धनवान, वीर, ज्ञानी हैं और शस्त्र-शास्त्र में प्रवीण हैं, वे अपने असहाय बंधुओं की सदा सहायता करते हैं। भय, क्रोध, विभेद, परस्पर विश्वास का अभाव, अत्याचार और आपस की हिंसा होने पर ही वे शत्रु के चंगुल में फँसते हैं। इनके लिए आंतरिक संकट ही सबसे बड़ा है। उसके सामने बाह्य संकट नगण्य है। गण में सर्वव्यापी समता (सदृशता) होती है, जन्म से तथा कुल से। इस कारण गण किसी प्रकार तोड़े नहीं जा सकते, न शौर्य से या चालाकी से, न रूप के जाल से। शत्रु केवल भेद उत्पन्न कर फूट डालने से जीत सकते हैं। इसलिए उनकी सुरक्षा राज्य संघों में है।'
शायद हम आज भूल गये हैं कि, 'समाज में गण की शक्ति आंतरिक समता में है।'
हिंदु समाज ने अपने जीवन के सर्वोदय में 'सभी सुखी हो' के सिद्घांत का गणतंत्रीय संविधान में साक्षात्कार किया था। जब कभी एक व्यक्ति के ध्वज-दंड के चारों ओर देश की आत्मा को बाँधने का प्रबंध हुआ, अंत में असफलता ही मिली। भारत की जीवन-प्रवृत्ति, उसकी प्रकृति तो विकेंद्रीकरण में थी, जिसका विकास गणराज्य के संघ में हुआ। यह गणतंत्र पद्घति संसार को भारत की देन है। अथर्ववेद का आदेश है-
'हे राजन् ! तुझको राज्य के लिए सभी प्रजाजन चुनें तथा स्वीकारें।' (तृतीय कांड, सूक्त ४, श्लोक २)
ऎसे चुने हुए व्यक्ति को वेदों ने 'राजा' कहा। इसके विस्मरण से समाज में, देश में विकृतियाँ उत्पन्न हुयी।