न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के अन्तर्गत आने वाले प्रदेश के 59 उद्योगों के मजदूरों की मजदूरी पुनरीक्षित करने की अधिसूचना अन्ततः जारी हो गयी। पिछले 2 सालों से जिस अधिसूचना के जारी होने का मैं इंतजार कर रहा था, उसे पाकर, देखकर बड़ी निराशा हुई। प्रदेश की समाजवादी पार्टी की सरकार ने प्रदेश के मजदूरों के साथ एक बार फिर बड़ा धोखा किया है। ऐसा इस सरकार ने दूसरी बार किया है कि न्यूनतम मजदूरी परामर्श बोर्ड, जिसमें श्रमिक संगठनों के साथ साथ बराबर संख्या में नियोजकों के प्रतिनिधि भी सदस्य होते हैं, द्वारा सर्बसम्मति से प्रस्तावित वेतनदरों से भी कम मजदूरी का निर्धारण किया गया है। परामर्श बोर्ड ने सर्बसम्मति से अकुशल श्रमिकों की मजदूरी 6800 रूपये किये जाने का प्रस्ताव किया था लेकिन अधिसूचना जारी हुई है 5700 रूपये की, अर्थात रूपये 1100 कम की। इसी तरह से ही अन्य श्रेणी के मजदूरों की मजदूरी भी प्रस्तावित मजदूरी से 1000-1100 रूपये कम निर्धारित की गयी है। पुनरीक्षित मजदूरी में अभी तक 5200 रूपये की मजदूरी पा रहे मजदूरो को अब 28 जनवरी से 5750 रूपये मूल वेतन मिलेगा अर्थात 550 रूपये की वृद्धि हुई है, मंहगाई भत्ता मिला कर यह मजदूरी 6016 होती है अर्थात 816 रूपये की बृद्धि होती है। कुशल मजदूरो को अब तक मिल रही मजदूरी 6580 के बजाय रूपये 7085 मूल वेतन मिलेगा, जो कि मंहगाई भत्ता मिलाकर 7413 होता है, अर्थात उन्हें 833 रूपये का फायदा होगा जबकि उक्त दोनो श्रेणियों के मध्य की श्रेणी अर्धकुशल श्रमिकों को अभी मिल रही मजदूरी 5928 के बजाय मूल वेतन 6325 मिलेगा जो कि मंहगाई भत्ता मिला कर रूपये 6617 होगा अर्थात उन्हें कुल 689 रूपये का फायदा होगा। इस प्रकार इस वेतन पुनरीक्षण में अर्द्धकुशल श्रेणी के मजदूरों के साथ घोर अन्याय हुआ है। वेतन पुनरीक्षित करते समय वार्षिक वेतन वृद्धि का कोई प्राविधान न किये जाने के कारण वर्षों पुराने और अनुभवी कर्मचारियों के साथ भी घोर अन्याय हुआ है क्योंकि उन्हें भी वही वेतन मिलेगा जो अभी अभी नयी सेवा में आये किसी अनुभवहीन कर्मचारी को मिलेगा। अनुभव और बरिष्ठता को पूरी तरह नजरन्दाज किया गया है। मैने परामर्श मण्डल से अनुरोध किया था कि चॅूकि दैनिक मजदूरों को कोई सामाजिक संरक्षण अर्थात ई0एस0आई0, भविष्य निधि, ग्रेच्युटी, सवेतन अवकाश, मेडिकल आदि की सुविधा नहीं मिलती, इसलिए उनकी मजदूरी नियमित श्रमिकों से 15 से 25 प्रतिशत तक अधिक निर्धारित की जानी चाहिए, इससे नियमित स्थानों पर कैजुअलाइजेशन की प्रवृत्ति पर भी रोक लगेगी, लेकिन इसे सिरे से नकार दिया गया।
संयोग ही है कि 2006 वेतन पुनरीक्षण के समय प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और 2014 में भी उसी की सरकार है। उस समय भी वेतन परामर्शमण्डल ने सर्बसम्मति से न्यूनतम मजदूरी की जो दरें प्रस्तावित की थीं, उससे भी 1000-900 रूपये प्रतिमाह की मजदूरी प्रदेश सरकार ने कम निर्धारित की थी। अकुशल श्रेणी के श्रमिकों की मजदूरी 3500 प्रस्तावित की गयी थी, लेकिन अधिसूचना जारी हुई 2600 की।
हमारे कुछ साथियों का मानना है कि 2007 में विधान सभा का चुनाव होना था और 2014 में लोक सभा का। ऐसे में वेतन का पुनरीक्षण होने से जहां सरकार मजदूरों को लुभाने में कामयाब होगी, वहीं बोर्ड द्वारा प्रस्तावित मजदूरी में प्रति मजदूर औसतन 1000 रूपये प्रतिमाह की कम मजदूरी की अधिसूचना जारी करके नियोजकों से चुनाव का खर्चा वसूलने में भी कामयाब होगी। अन्यथा क्या कारण हो सकता था कि जिस मजदूरी की दर पर नियोजकों के भी प्रतिनिधि सहमत हो गये थे, उससे भी कम मजदूरी निर्धारित की जाती।
शायद! इसी तरह सब को साथ ले कर चलने को ही समाजवाद कहते हैं।