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Bhartiya No. 1 (Nationalist)     06 December 2010

Poems Of Neelamji!!!!

काल प्रेमी हुआ

समय की मुठी से रिसती जाती ज़िन्दगी
टपकती बूंदें, एक -एक कर के
खाली हो जाता समंदर
बिछड़ते जाते संगी साथी
रह जाता अकेला काल, करता हाहाकार


उत्साह के पल ,उल्लास के पल
मुस्कुराती ज़िन्दगी
बातें करती आंखें
काल की ख़ामोशी की जुबान बनी जो
वो ज़िन्दगी विस्मृत होने पाती
यादों में रहते ,खुद से बातें करते
काल की आंखें अक्सर नम हो जातीं
कब काल किसीका हुआ कहते थे लोग
पर ये क्या हुआ
काल भी मोही हुआ
देखो प्रेम- विछोही हुआ

 

नया क्या है ?

नया क्या है जहाँ में , वही सब पुराना है
भावों की नदी का बहना है ,विचारों के द्वीप का बन जाना है
कोई मोड़ नहीं है ऐसा जिससे कोई भी न गुजरा अब तक
हर मील का पत्थर जाना पहचाना है
कैसे कहें कहाँ पर जाना है
कोई ऐसी मंजिल नहीं जिसका रास्ता अनजाना है
राही के पास राहें तोह है कई
पर सब नपी हुई, एक भी तोह न है नयी
फिर क्यूँ दौड़े फिर क्यूँ भागे
पहुँच जायेगा सही जगह ,हर राह अपनी है,
हर जगह अपना ही ठिकाना है.

 

टूट जायेगा ये नाता साँस रुकने के साथ
छूट जायगा ये साथ नब्ज़ डूबने के बाद
मालूम है की आवाज़ और दृश्य रूप में दिखना फिर संभव हो पायेगा
ये चेहरा भी आँखों से ओझल हो जायेगा
महसूस हुआ जो भीतर कहीं वही अपनत्व बाकि रह जायेगा
क्षण भर के लिए हुआ जो एहसास पूर्णता का वही साथ जायेगा

मौत

मौत एक स्याही है जो गुमनाम कर जाती है ज़िन्दगी की इबारत को
खाली करवा देती है शरीर की इमारत को
विलीन हो जाने से कुछ पल पहले धुंधलाते गड्ड मड्ड हो जाते चेहरों को तेज़ी से छूती है स्मृति
ठहरती ठिठकती उन पलों में जो सचमुच गहरे थे
पर ज्यादा ठहरने की इजाज़त नहीं है सो आगे बढती है
फिर से एक बार दोबारा जी सकने की चाह में
जो अर्थपूर्ण था पर अनदेखा किया अहम् में, उसे हासिल करने की नाकाम कोशिश में

कुछ टूटे फूटे शब्द जो निकलते हैं उस भाषा में जिसमें इन्सान खुद से बात करता है
शब्द जिन्हें कोई और नहीं समझ पाता
सिर्फ और सिर्फ मरने वाला और यदि कोई ज़िन्दगी देनेवाला है तोह वो समझता है
जिसे दबाता रहा जीवन भर ,उस अंतर्मन की आवाज़ के सिवा कुछ भी तोह सुनाई नहीं पड़ता
नज़र आता है उसके आईने में सिर्फ बीता हुआ हर एक लम्हा
लम्हा जिसे वैसे नहीं जिया जैसे जीना चाहिए था
पछतावा जो क्षण भर के लिए होता था एकांत के जंगल में
अब सरेआम होता है,निश्वासों की लपटों के बीच
वेदना की चरम सीमा महसूस होती है
अवर्णनीय है वो खालीपन जो स्व को डुबो देता है मानो एक अंधे सागर में
बस देखनेवाले ये सब समझ नहीं पाते
जीते जी छुपाने की कोशिश इन्सान करता है
मरते वक़्त ये खेल मौत करती है .

सुनो

फूलों ने पुकारा है कुछ कोमलता हमसे लो मानव
बोली नद्या की धार , चलना हमसे सीखो
उड़ते परिंदे देते आसमानों को छूने का हौंसला
ज़मीन बुलाती जड़ों से जुड़े रहने को
कहते बादल बरसाने को हाथों से अमृत
सूरज रचता प्यार की गर्मी से वो घोसला जिसमें जीवन पलता
पेड़ खड़े हो दिलों को ठंडक देने को कहते
झरने गिरकर उठ जाने की राह दिखाते
कितने सारे कहनेवाले पर सुननेवाले के पास समय नहीं
जीवन जीने का है समय पर कैसे जीना है सीखने का समय नहीं

प्रेम कब बन्ध पाया है

प्रेम कब बन्ध पाया है
आँखों से उतरा तोह हृदय में पाया है
हृदय से निकला तोह होंठों पे आया है
अमृत की धार है,रौशनी देता अंगार है
चलाता है और संसार को जीवन यही देता है
गतिमान है सदा से फिर भी एकमात्र स्थिर तत्व है
अश्रु का बहाव है और शक्ति का दाता
कहो प्रेम बिना कौन जी पाता
ये बात अलग है की कोई प्रेम में खुद तक सिमट जाता
और कोई जहाँ तक को समेट लेता इसके आंचल में
गलती नहीं प्रेम की ,मूरत वही एक ,पर कोई पूजनेवाला इसे पत्थर कोई ईश्वर कर लेता है
है सब तुझ पर निर्भर इन्सान-व्यापारी
इस जीवन के इस सौदे में तू देता है या सिर्फ लेता है.
लेनेवाला खो देता खुद को, देनेवाला दे कर भी सब कुछ पा लेता है
ये खेल अनोखा विस्मित कर देता है
अपने स्पर्श से सचमुच चमत्कृत कर देता है



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 3 Replies

Bhartiya No. 1 (Nationalist)     06 December 2010

छुपाना कैसे संभव है

कौन क्या छुपा पाया है
जब लब नहीं बोलते तोह इन्सान की आंखें बोलती हैं
जब आंखें नहीं बोलती तोह सांसें बोलती हैं
बे आवाज़ कुछ भी नहीं इस दुनिया में
और आवाज़ उसे सुन सकनेवाले के लिए हर राज़ खोलती है
धडकनों का उठना गिरना ही काफी है दिल का हाल बताने के लिए
चाल की तेज़ी -धीमापन बाकि है दिमाग की गति जानने के लिए
क्या छुपाओगे बताओ

दिखती नहीं हवा पर छुप नहीं पाती
नज़र नहीं आती भावनाएं पर फिर भी नज़र जाती हैं
जो है वो अनजाना कैसे रहेगा

गंध बोलती है ,आकार बोलता है
रौशनी बोलती है,स्पंदन बोलता है
बोलेगा,दिखेगा , सुनाई देगा,महसूस होगा
जो कुछ भी जग है में उसका "होना " और अभिव्यक्त होना जुड़े हैं कुछ इस तरह
की एक के बिना दूजे का अस्तित्व असंभव है

आंसूं

जब जुबान नाकाम हो जाती है तोह आंसूं बोलते हैं
दर्द बर्दाश्त से बाहर हो जाये जब तब ये दर्द की गांठ खोलते हैं
आसान नहीं की इन्सान इस दुनिया में रहे और घायल हों
और घाव भरने से पहले ज़रूरी है घाव होने का पता चलना
बस यही बताने का एक फ़र्ज़ निभाते हैं आंसूं
आंखें सहेजती हैं पानी खुद में ज़िन्दगी भर
बस उसी का एक क़र्ज़ चुकाते हैं आंसूं
जिंदा हैं हम और खुदा नहीं हुए अभी तलक
बस यही एक बात दिलाने को आँखों में जाते हैं आंसूं

N.K.Assumi (Advocate)     06 December 2010

I would appreciate if members post it in english also whenever urdu, Hindi or arabic language is used in this forum.

Bhartiya No. 1 (Nationalist)     06 December 2010

Sir,

Above poems are written by Poet Neelamji in Hindi, and is so beutiful and complex that I am not in a position to translate it into English.


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