अगर आप कोई अचल संपत्ति जैसे मकान, दुकान या दफ्तर खरीदना या बेचना चाहते हैं तो आपके लिए उस इलाके का सर्किल रेट जान लेना बहुत जरूरी है। वजह यह है कि प्रॉपर्टी के सौदे को जब रजिस्ट्रार के दफ्तर में रजिस्टर कराने जाएंगे तो वहां सारी लिखत-पढ़त सर्किल रेट के मुताबिक ही की जाएगी।
दूसरे शब्दों में कहें तो प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री में महत्व इस बात का नहीं होता कि आपने किस कीमत पर प्रॉपर्टी को खरीदा या बेचा है। महत्व इस बात का होता है कि प्रॉपर्टी जिस इलाके में है, उसका सर्किल रेट सब-रजिस्ट्रार द्वारा कितना तय किया गया है। रजिस्ट्री के कागजात तैयार कराने के लिए आपको उसी के अनुसार स्टांप ड्यूटी अदा करनी होगी। प्रॉपर्टी का सौदा सर्किल रेट से कम पर होने पर भी आपको स्टांप ड्यूटी सर्किल रेट के हिसाब से चुकानी होगी। इस बात को एक उदाहरण के जरिए आसानी से समझा जा सकता है।
मान लीजिए अनुराग गुडग़ांव में 20 लाख रुपये में एक प्लॉट खरीदता है। हालांकि सब-रजिस्ट्रार द्वारा निर्धारित सर्किल रेट के हिसाब से उसकी कीमत 26 लाख रुपये बैठती है। ऐसे में विक्रेता और अनुराग के बीच करार तो 20 रुपये का होगा पर इसके लिए उन्हें स्टांप ड्यूटी 26 लाख रुपये के हिसाब से अदा करनी होगी। सर्किल रेट का महत्व केवल प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री तक ही सीमित नहीं है, बल्कि प्रॉपर्टी को बेचने से उससे मिली पूंजीगत आय (कैपिटल गेन) पर देय कर का निर्धारण भी इसी के आधार पर किया जाता है। आयकर अधिनियम 1961 की धारा 50 सी में कैपिटल गेन टैक्स के निर्धारण को लेकर इस बात का स्पष्टï रूप से उल्लेख किया गया है।
ऐसे मामलों में, जहां सेल डीड में प्रॉपर्टी की कीमत सर्किल रेट से कम दिखाई गई होती है, कैपिटल गेन टैक्स का निर्धारण सरकारी वैल्यूएशन अथॉरिटी, जोकि सामान्यत: सब-रजिस्ट्रार ही होता है, द्वारा निर्धारित मूल्य के आधार पर किया जाता है। इस तरह अगर हम उपरोक्त मामले को देखें तो कैपिटल गेन टैक्स की गणना प्रॉपर्टी का विक्रय मूल्य 26 लाख रुपये मानते हुए की जाएगी। मान लीजिए कि संपत्ति केवल 15 लाख रुपये में ही खरीदी गई है तो धारा 50 सी के मुताबिक कैपिटल गेन 11 लाख रुपये होगा, क्योंकि संपत्ति का मौजूदा सर्किल रेट 26 लाख रुपये है। इस तरह हम देखते हैं कि प्रॉपर्टी कम कीमत में खरीदने पर भी अनुराग को ज्यादा कीमत पर कैपिटल गेन टैक्स चुकाना पड़ेगा। यह बात भले ही करदाता के मन माफिक न बैठती हो पर आयकर कानून में ऐसा ही प्रावधान है। उपहार में अचल संपत्ति प्राप्त करने वालों के लिए भी सर्किल रेट महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्हें भी, खासकर अविभाजित हिन्दू परिवार (यूएचएफ) के मामले में उपहार की प्रॉपर्टी को उसके सर्किल रेट की राशि के बराबर माना जाएगा, जिस पर आयकर अधिनियम की धारा 56 के तहत उन्हें आयकर देना होगा।