From Adwani’s blog
टेलपीस (पश्च लेख)
कोई भी आसानी से शर्त लगा सकता है और जीत भी सकता है, यहां तक कि कॉलेज क्विज में भी अधिकांश विद्यार्थी देश के नियंत्रक और महालेखाकार का नाम नहीं बता पाएंगे।
वैसे सी.ए.जी. श्री विनोद राय हैं
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11 जुलाई, 2011 की ‘आऊटलुक‘ पत्रिका के आवरण पर विनोद राय का चित्र है और साथ में मोटी सुर्खियों में लिखा है: दि मैंन हू रॉक्ड दि यूपीए (वह व्यक्ति जिसने यूपीए को हिला दिया)।
उपशीर्षक कहता है: प्रत्येक विशालकाय घोटाले जिसने मनमोहन सिंह के शासन के लिए भूकम्प ला दिया है- सीडब्ल्यूजी, टू जी या केजी बेसिन सबके पीछे शांत और निर्णायक हाथ भारत के नियंत्रक और महालेखाकार का है।
पोस्ट स्क्रिप्ट
चालीस वर्षों से मैं संसद में हूं और सरकार द्वारा बुलाई गई अनगिनत सर्वदलीय बैठकों में भाग ले चुका हूं।
3 जुलाई की शाम को प्रधानमंत्री द्वारा आहत बैठक न केवल अनोखी सिध्द हुई और ऐसी भी जो अतीत में कभी देखने को नहीं मिली।
कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि सर्वदलीय बैठक सरकार की आलोचना करने पर सर्वसम्मत हुई है जैसी कि पिछले सोमवार को हुआ।
लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने विचार-विमर्श की शुरूवात की। उनका भाषण खरा और दमदार था। देश एक मजबूत और प्रभावी लोकपाल चाहता है। लेकिन इस मुद्दे पर सरकार का जो रूख रहा और संसद को एक किनारे कर दिया गया उसके बचाव में कुछ नहीं कहा जा सकता। प्रचलित संसदीय प्रक्रिया को दरकिनार कर इसने मामले को उलझा दिया और अपने आपको हंसी का पात्र बना दिया। यह सर्वदलीय बैठक इस मुसीबत में से निकलने का प्रयास दिखती थी।
बैठक में बोलने वाले सभी सांसदों ने भाजपा नेती की बात का समर्थन किया। बैठक में अंतिम वक्ता थे राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरूण जेटली।
उन्होंने कहा सरकार ने यहां पर विधेयक के दो प्रारूप हमें दिए हैं - एक टीम हजारे द्वारा तैयार और दूसरा पांच मंत्रियों द्वारा तैयार। उन्होंने इस पर जोर दिया कि मंत्रियों वाले प्रारूप ने लोकपाल को एक दब्बू सरकारी व्यक्ति बना दिया। जब सरकार ने संसद में लोकपाल विधेयक प्रस्तुत करे तो वर्तमान प्रारूप् को आमूल चूल बदल देना चाहिए।
लालकृष्ण आडवाणी
4 जुलाई, 2011
नई दिल्ली