दोस्तों ! इस एजेंडा के INDEX के सभी POINTS यहाँ सिलसिलेवार पोस्ट करूँगा..जैसे-जैसे टाइप का काम कर लूँगा.. कृपया इसमें अपनी राय दें..
१. प्रस्तावना
क्या है राजनीतिज्ञों और राजनीतिक दलों की सच्चाई और क्या है उनकी “राजनीति”? क्यों नहीं लागू किया जाता “जनता का एजेंडा”? इसे क्यों नहीं लागू कर पाई कांग्रेस? क्यों नहीं लागू किया “जनता का एजेंडा” भारतीय जनता पार्टी ने उनकी छः साल की सत्ता के बावजूद? क्या मनुवादी भाजपा / आर.एस.एस. लागू कर सकते हैं “आम आदमी का एजेंडा? क्या मुलायम-लालू-मायावती-रामबिलास पासवान-नितीश कुमार वगैरह लागू करेंगे यह “आम आदमी का एजेंडा”?
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देश के हर नागरिक को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है और हर नागरिक के सम्मानित जीवन के लिये उनकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ती करना और हर नागरिक के मूल-अधिकारों की रक्षा करना सरकार का संवैधानिक दायित्व है. हर भारतीय नागरिक को संविधान ने सम्मान के साथ जीने के मौलिक अधिकार दिए हैं और सरकार का मात्र इतना ही काम है कि वह इस तरह के क़ानून और व्यवस्था बनाए और उनका पालन सुनिश्चित करे कि देश का हर नागरिक सम्मान के साथ जीवन जी सके और शिक्षा के साथ अपने जीवन को उन्नत बनाने के समान अवसर हर नागरिक को मिलें. सरकार का मात्र इतना ही काम है कि वह देखे कि;
१. नागरिकों को छत अर्थात घर हासिल है या नहीं? सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों को घर उपलब्ध कराने के लिये बनाई गई योजनायें सही और सुचारू रूप से लागू की जा रही हैं या नहीं? और हैं तो वो नागरिकों की सही सेवा कर रहे हैं या नहीं? इसके लिये नियम-कानून बनाना और उनका सख्ती से पालन कराना तथा कानून का पालन न करने वालों को जेल भेजना सरकार का संवैधानिक दायित्व है.
२. नागरिकों को भोजन हासिल हो रहा है या नहीं? सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों को भोजन उपलब्ध कराने के लिये बनाई गई योजनायें, राशनिंग कार्यालय और राशन की दुकानें सही और सुचारू रूप से लागू की जा रही हैं या नहीं? और हैं तो वो नागरिकों की सही सेवा कर रहे हैं या नहीं? इसके लिये नियम-कानून बनाना और उनका सख्ती से पालन कराना तथा कानून का पालन न करने वालों को जेल भेजना सरकार का संवैधानिक दायित्व है.
३. नागरिकों को इलाज हासिल हो रहा है या नहीं? सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों को इलाज उपलब्ध कराने के लिये सरकारी अस्पतालें और उनमें इलाज की आवश्यक सुविधाएँ, डाक्टर तथा अन्य कर्मचारी उपलब्ध हैं या नहीं? और हैं तो वो नागरिकों की सही सेवा कर रहे हैं या नहीं? इसके लिये नियम-कानून बनाना और उनका सख्ती से पालन कराना तथा कानून का पालन न करने वालों को जेल भेजना सरकार का संवैधानिक दायित्व है.
४. सभी को शिक्षा के समान अवसर मिल रहे हैं या नहीं? सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर नागरिकों के बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराने के लिये सरकारी स्कूल-कालेज और उनमें आवश्यक सुविधाएँ, शिक्षक, तथा अन्य कर्मचारी उपलब्ध हैं या नहीं? और हैं तो वो नागरिकों की सही सेवा कर रहे हैं या नहीं? इसके लिये नियम-कानून बनाना और उनका सख्ती से पालन कराना तथा कानून का पालन न करने वालों को जेल भेजना सरकार का संवैधानिक दायित्व है.
५. कोई किसी का शोषण तो नहीं कर रहा, कोई किसी के हक़ छीन तो नहीं रहा, कोई संसाधनों की जमाखोरी तो नहीं कर रहा, कोई किसी को सता तो नहीं रहा, सभी नागरिक अपराधों और अपराधियों से सुरक्षित हैं या नहीं? पुलिस थाने तथा उनमें पुलिस कर्मचारी उपलब्ध हैं या नहीं? और हैं तो वो नागरिकों की सही सेवा कर रहे हैं या नहीं? इसके लिये नियम-कानून बनाना और उनका सख्ती से पालन कराना तथा कानून का पालन न करने वालों को जेल भेजना सरकार का संवैधानिक दायित्व है.
६. किसी के साथ अन्याय तो नहीं हो रहा, सभी नागरिकों को न्यायालयों में न्याय हासिल हो रहा है या नहीं? सभी क्षेत्रों में सही संख्या में न्यायालय हैं या नहीं, न्यायालयों में उचित संख्या में न्यायाधीश तथा अन्य कर्मचारी हैं या नहीं? और हैं तो वो नागरिकों की सही सेवा कर रहे हैं या नहीं? इसके लिये नियम-कानून बनाना और उनका सख्ती से पालन कराना तथा कानून का पालन न करने वालों को जेल भेजना सरकार का संवैधानिक दायित्व है.
७. नागरिकों को रोजगार के समान अवसर मिल रहे हैं या नहीं? व्यासायिक संसथान खोलना और व्यवसाय करना और उनमें नागरिकों को सरकारी नौकरी देना सरकार का काम नहीं है पर व्यावसायिक संस्थानों में नागरिकों को रोजगार के समान अवसर उपलब्ध हो रहे हैं या नहीं? इसके लिये नियम-कानून बनाना और उनका सख्ती से पालन कराना तथा कानून का पालन न करने वालों को जेल भेजना सरकार का संवैधानिक दायित्व है.
क्या सरकार में बैठे हजारों-लाखों नेता, मंत्री, संसद सदस्य, विधायक, पार्षद, और करोड़ों सरकारी अधिकारी-कर्मचारी अपने ये दायित्व निभा रहे हैं? यदि ये अपना दायित्व निभा रहे हैं तो देश की आज़ादी और लोकतंत्र लागू होने के बाद आधी सदी से भी ज्यादा वक़्त बीत जाने पर भी देश की आधी आबादी गरीबी में रोटी के लिये क्यों संघर्ष कर रही है और खुले आस्मां के नीचे, फूत्पाथों पर, झोपड़ियों में क्यों रह रही है? हजारों-लाखों किसानों ने आत्महत्या क्यों की? पीने का पानी तक जनता को इतने वर्षों में क्यों उपलब्ध नहीं हो पाया? गाँव क्यों उजाड़ रहे हैं? किसानों की जमीनें क्यों छीनी जा रही हैं? राशन की दुकानों, सरकारी अस्पतालों, स्कूलों-कालेजों के इतने बुरे हाल क्यों हैं और बच्चों को एडमिशन तक क्यों नहीं मिल पा रहे? पुलिस थानों में जनता के साथ दुर्व्यवहार क्यों होता है? न्यायालयों में सिर्फ पैसेवाले ही क्यों जा पाते हैं? न्याय देने में देरी क्यों होती है? सरकारी कार्यालयों में फाइलें क्यों लेट होती हैं? सरकारी कर्मचारी कामचोरी क्यों करते हैं और समय पर अपनी द्युति पर हाजिर क्यों नहीं होते? जबकि शासन प्रशासन में बैठे लोगों को जनता के पैसे से भारी वेतन, तमाम तरह के भत्ते, काम के कम से कम घंटे, तमाम तरह की सवेतन छुटियाँ और अनियंत्रित शक्तियां हासिल हैं कि वो जैसे च्जहें जनता का धन लूटें और जनता इस सरकारी लूट और अत्याचार के परिणाम स्वरुप तमाम तरह के टैक्स भरती रहे और अपने जीवन के लिये संघर्ष करती रहे. क्यों है ऐसा? शासन-प्रशासन में सरकारी पदों पर बैठे जनता के धन से वेतन और सुविधाएँ पाने वाले जनता के नौकर क्यों इतने अनियंत्रित हैं? आइये देखते हैं कि शासन-प्रशासन में सरकारी पदों पर जनसेवक बने बैठे ये सब क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं? कहाँ जा रहा है जनता का ८५% से अधिक धन?
शासन अर्थात सरकार में क्या हो रहा है? और किस तरह जनता को लूट रहे हैं?–
हमारे जिस भारतीय लोकतान्त्रिक संविधान को विश्व में सर्वश्रेष्ठ मानवीय संविधान माना जाता है और हमारे देश की लोकतांत्रिक-व्यवस्था को कहा जाता है – “जनता का शासन, जनता के द्वारा, जनता के लिये”, परन्तु अब तक जितनी भी राजनीतिक पार्टियाँ जिस स्तर पर भी सत्ता में आईं उन्होंने किया इसके बिलकुल उलट. संविधान को उसकी भावना के अनुसार आज तक लागू ही नहीं होने दिया गया है बल्कि उसे मात्र “जनता का वोट देने का अधिकार” मानने तक सीमित रखा गया है और एक बार वोट देने के बाद सत्ता पा जाने वाले लोग फिर राजा-महाराजों की तरह निरंकुश हो जाते हैं. सरकार में अर्थात सत्ताधरी विपक्षी राजनीतिक पार्टियों में बैठे मंत्री, संसद सदस्य, विधायक, पार्षद, पंचायत सदस्य इत्यादियों का बस एक ही लक्ष्य है और वो है “वोटों की राजनीति करना” ताकि किसी भी तरह सत्ता की शक्ति उन्हें हासिल हो. सभी ने जनता की भलाई की सिर्फ दिखावे वाली योजनायें बनाएँ और जोर-जोर से उनका ढोल पीता पर सभी ने इन योजनाओं का ८५% से ज्यादा पैसा बीच रास्ते में ही तरह तरह से मिल-बांटकर लूट लिया. सभी राजनीतिक दलों का उद्देश्य बस किसी भी तरह चुनाव जीतना ही रहा है. इसके लिये उन्होंने ऐसे षड़यंत्र रचे कि आम लोग सिर्फ रोटी के लिये संघर्ष करने में ही उलझे रहें और शिक्षित न हो पायें जिससे आम जनता को राजनीतिक पार्टियों और राजनीति को धंधा बनाए बैठे राजनीतिज्ञों की तरफ देखने की और अपने अधिकारों को जानने-समझने-मांगने का मौका ही न मिले और जो थोड़े से जागरूक लोग उनसे हिसाब माँगना चाहें भी तो ऐसे नियम-क़ानून बना दिए गए हैं कि जनता भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कोई सीधी ठोस कानूनी कार्यवाही कर ही न सके.
भ्रष्टाचारियों ने सारे कानून, सारे नियम और सारी व्यवस्था इस तरह की चक्रव्यूह सी रच दी है कि जनता कंगाल, अशिक्षित, कमजोर, मूकदर्शक और निराश-उदासीन मोहभंग की सी स्थिति में रहे ताकि अधिकांश लोग वोट देने तक न आयें न आ सकें और कम वोटों का जुगाड़ कर चुनाव में जीतने में आसानी हो. इस हेतु ये जनता में धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र इत्यादि के नाम पर वोटों का ध्रुवीकरण और तुष्टिकरण की कुनीति अपनाकर क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ती में लगे रहते हैं और जीतने के बाद मात्र अपने वोटरों को खुश रखने में लगे रहते हैं. ऐसा भी नहीं है कि ये राजनीतिज्ञ अपने पीछे इकठ्ठा हुए लोगों का भी कोई भला करते हैं बल्कि बस विभिन्न योजनाओं की घोषणा करते रहते हैं और योजनाओं के लिये लागत से कई गुना ज्यादा धन इन राजनीतिज्ञों-ठेकेदारों-दलालों और सरकारी अधिकारीयों-कर्मचारियों की जेब में चला जाता है. यदि वास्तव में ये अपने वोटरों का भला करते होते तो आज कांग्रेस का कोई सपोर्टर अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति/जनजाति का कोई नागरिक गरीब, असहाय, अशिक्षित, बेरोजगार न रहता और भाजपा ने अपने शासनकाल में अपने वोटरों के लिये अयोध्या में जिस तरह बाबरी मस्जिद गिराई गई वैसे ही राम मंदिर भी बनवा दिया होता. अब तो खैर राम मंदिर को साइड में कर ये विकास करने चल पड़े हैं, जाने कैसे और जाने किसका? लालू को मौका मिला तो भैसों के चारे का पैसा खा गए, मुलायम को मौका मिला तो अपने परिवार की सरकार बना दी, मायावती को मौका मिला तो गरीब का पैसा अपनी और हाथियों की मूर्ती लगवाकर अमर होने में लगा दिया.
प्रशासन में सरकारी अधिकारी-कर्मचारी क्या कर रहे हैं? और किस तरह जनता को लूट रहे हैं?– सरकारी अधिकारी-कर्मचारी नौकरी मिल जाने पर “राज-कर्मचारी” की तरह जनता से मनमाना तानाशाही व्यवहार करते हैं और अपने पद का दुरूपयोग करते हुए जनता का धन लूटते रहते हैं. कामचोरी, भ्रष्टाचार और तनख्वाह बढाने, काम के घंटे कम कराने और छुट्टियों की संख्या बढवाने के लिये हड़ताल जनता और सरकार को ब्लेकमेल करते रहते हैं. हड़ताल करने वाले जनता के नौकरों को तत्काल बर्खास्त किया जाए और उन्हें जनता के धन से दिया गया वेतन उनसे वसूल किया जाए, जनता के धन से दिए वेतन से बनाई गई उनकी संपत्ति जब्त की जाए. फिर भी जो जनता के नौकर सरकारी काम में बंद कराने बाधा उत्पन्न करें उन्हें तुरंत गिरफ्तार करके उन्हें राष्ट्रद्रोही घोषित करके राष्ट्रद्रोह में आजीवन सशक्त कारावास की सजा का प्रावधान किया जाए. बेरोजगार नौजवानों-नवयुवतियों का वैकल्पिक रजिस्ट्रेशन किया जो हड़ताल की स्थिति में तुरंत दैनिक वेतन पर काम करने के लिए सहमत हों, इस हेतु उनकी योग्यता के अनुसार विभिन्न आवश्यक सेवा के पदों की ट्रेनिंग देकर ट्रेंड किया जाए और इस सेवा का नाम हो “राष्ट्रीय सेवा दल” “Nationalist Volunteer Service”.
क्या यही है “जनता का शासन”??? क्या यही होना चाहिए सरकार का एजेंडा कि वोट लो और राजा बनकर निरंकुश शासन करो और जनता का धन लूटो??? नहीं! बिलकुल भी नहीं!!
जनता की घर, भोजन, स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा, सुरक्षा और न्याय की बेसिक जरूरतें पूरी करने की तरफ किसी का ध्यान नहीं है.
ज़रा याद करें, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गाँधी ने, जब वे संसद में कांग्रेस की सर्वाधिक ४१६ सीटों के बहुमत के साथ सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री थे, तब कहा था कि सरकार के द्वारा विभिन्न योजनाओं के लिए दिया गया जनता के पैसे का ८५% हिस्सा बिचौलियों के द्वारा लूट लिया जाता है. कौन हैं ये बिचौलिये? और कैसे रोकी जा सकती है जनता के पैसे कि यह लूट?? इसका सीधा जवाब है कि शासन-प्रशासन का हर काम पारदर्शिता के साथ अर्थात जनता के सामने खुले तौर पर होना चाहिए और जनता के पैसे से वेतन, तमाम तरह के भत्ते और सुविधाएँ भोगने वाले शासन–प्रशासन के पदों पर बैठे जनसेवकों की जवाबदेही तय की जाए तथा पद का दुरूपयोग करने वालों पर क़ानून का शिकंजा हो अर्थात पद की शक्तियों का दुरूपयोग करने वाले जनसेवक होने का मुखौटा लगाए बैठे अपराधियों को राष्ट्रद्रोह में सशक्त आजीवन की सजा का प्रावधान किया जाए, संविधान की धारा ५१ ए के विरुद्ध हरकतें करने वालों को राष्ट्रद्रोही माना जाए और सशक्त आजीवन कारावास के सजा दी जाए, तब आयेगा वास्तविक “जनता का शासन” !!!