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Sarvesh Kumar Sharma Advocate (Advocacy)     13 October 2009

truth

न विश्वासाज्जातु परस्य गेहे गच्छेन्नरश्चेतवानो विकालो।
न चत्वरे निशि तिष्ठिन्न्गिुडो राजकाययां योषितं प्रार्थचीत।।
हिंदी में भावार्थ-
सावधानी की दृष्टि से कभी भी किसी ऐसे व्यक्ति के घर सायंकाल नहीं जाना चाहिये जिस पर विश्वास न हो। रात में छिपकर चैराहे पर न खड़ा हो और राजा-वर्तमान संदर्भ में हम उसे अपने से शक्तिशाली व्यक्ति भी कह सकते हैं-जिस स्त्री को पाना चाहता है उसे पाने का प्रयत्न नहीं करना चाहिये।
 



 1 Replies

Munshi ji ( kachehri ka munshi )     14 October 2009

आप तो बहुत बड़ा पंडित हैं शर्मा बाबू !!!!!!!!!
 किसका लिखा  श्लोक है यह ? जरा हम को आप बता देते तो हम भी अपने तख्ते पर भाव बनातेएक पंडित जी आते है हमारे बस्ते पर , बहुत श्लोक झाड़ते है , समझि लेओ कि फीस के बदले श्लोक सुना के ही चल देते हैंहम तो अपने वकील साहेब से तंग गए हैं भइया !!!!


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