आंदोलन और राजनीति
70 साल हुए भारत मे लोकतांत्रिक व्यवस्था को चलते हुए । इस पूरी यात्रा में भारत ने बहुत उतार चढ़ाव देखें । कई आंदोलन और कई तरह के राजनैतिक प्रयोगो का साक्षात्कार किया । आंदोलन के बाद उभरी नई राजनीति के दर्शन भी किये । प्रमुख रूप से देखे तो जेपी आंदोलन की याद सबसे पहले आती है जिसके बाद देश की राजनीति में एक बड़ा भूचाल आया । कांग्रेस पहली बार सत्ता से बाहर हुई और नए समाजवादी नेताओ के शासन से जनता रूबरू हुई , लेकिन आंदोलन के उनके साथी रहे आरएसएस के साथ वो आगे नही चल पाये और नतीजा ढाक के तीन पात । समाजवादी जेपी आंदोलन की उपज के रूप में कई नए नेताओ का जन्म हुआ लेकिन धीरे धीरे वो इस राजनीति के दलदल में धसते गए और एक राजनैतिक आंदोलन की आकांक्षा धूमिल होती चली गयी ।
दूसरा बड़ा आंदोलन अण्णा का याद आता है जहाँ पूरा देश भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में शामिल हुआ और लोकपाल के लिए आंदोलन किया । फिर क्या हुआ ? इस आंदोलन की उपज के रूप में एक नया राजनैतिक प्रयोग हुआ । दिल्ली में उस प्रयोग को प्रचंड सफलता भी मिली और आम आदमी पार्टी लगभग निर्विरोध सत्ता के शिखर पर पहुँच गयी । लगा अब कुछ बदलाव देखने को मिलेगा , लेकिन आम आदमी पार्टी का भीतरी असंतोष सड़क पे आया और योगेन्द्र जी , प्रशांत जी, माननीय शांति भूषण जी समेत कई राजनैतिक और सामाजिक चिंतक इस राजनैतिक आंदोलन से अलग हो गए । आम आदमी पार्टी की वर्तमान स्थिति और उसकी पिछले कुछ समय की कार्यपदत्ति से लगता है कि आप उस राजनैतिक प्रयोग और आंदोलन के मूल विचार से कही दूर होकर किसी अलग रास्ते पे भटक गयी है और वो भी इस राजनैतिक महात्त्वकांक्षाओ के दलदल में कहीं खो गयी है।
योगेन्द्र जी और प्रशांत जी ने अलग होकर इस राजनैतिक आंदोलन को आगे ले जाने का निर्णय लिया । और पहले स्वराज अभियान और फिर उसके बाद स्वराज इंडिया का गठन किया । शुरुआत उन्होंने किसानों की समस्या और उनसे जुड़े मुद्दों से की और ये कहना गलत नही होगा कि एक मजबूत किसान आंदोलन को जन्म दिया । लेकिन इस सभी प्रयोगों में लोकपाल शायद कही खो गया । स्वराज इंडिया का किसान आंदोलन तो एक सराहनीय प्रयास है पर क्या लोकपाल की जरूरत अब हमारे नेताओं को नही लगती , ये कह सकते है कि प्रशांत जी एक अधिवक्ता के रूप में लोकपाल के उस आंदोलन को बल दे रहे है लेकिन शायद इसके लिए और बेहतर प्रयासों की जरूरत है ।2014 में बीजेपी भी लोकपाल के मुद्दे को भूनाकार ही सत्ता में आई लेकिन सत्ता और शासन के 4 साल बाद भी लोकपाल सत्ता के गलियारों में कही खोया हुआ है ।
वास्तव में जेपी से अन्ना तक सभी आंदोलनों के हश्र ऐसा क्यों हुआ ? इसपे विचार आवश्यक है । वास्तव में हमने आंदोलन से राजनीति का रास्ता अपनाया और हर बार आंदोलन का राजनीतिकरण होते होते आंदोलन की आत्मा कही खत्म होती गयी ।देश मे अब एक अलग तरह के प्रयास की आवश्यकता है । राजनीति को आंदोलन के रास्ते पे लाने की जरूरत है । देश की व्यवस्था में बड़ा सुधार तभी संभव है जब राजनीति को आंदोलन के तरीके से किया जाए और किसी भी परिस्तिथि में उस राजनैतिक आंदोलन की आत्मा को खत्म न होने दिया जाए , बल्कि राजनीति के सभी प्रयोग उस आंदोलन और उसके मूल विचार को मजबूती देने के लिए हो । संभव है कि मेरी बात से सभी सहमत न हो लेकिन ये सिर्फ मुझ जैसे एक सामान्य व्यक्ति का एक विचार है।
धन्यवाद.