जाने कब समंदर मांगने आ जाए!
Sarvesh Kumar Sharma Advocate (Advocacy) 04 January 2011
Sarvesh Kumar Sharma Advocate (Advocacy) 04 January 2011
पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है
यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है
और जिस के पास देने को न कुछ भी
एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है
Sarvesh Kumar Sharma Advocate (Advocacy) 04 January 2011
कर स्वयं हर गीत का श्रृंगार
जाने देवता को कौनसा भा जाय!
Sarvesh Kumar Sharma Advocate (Advocacy) 04 January 2011
चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं
आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ
पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं
हर छलकते अश्रु को कर प्यार
जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय!
व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की
काम अपने पाँव ही आते सफर में
वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा
जो स्वयं गिर जाय अपनी ही नज़र में
हर लहर का कर प्रणय स्वीकार
जाने कौन तट के पास पहुँचा जाए!
Sarvesh Kumar Sharma Advocate (Advocacy) 04 January 2011
usne bhi kya laaz rakhi hai meri gumrahi ki,
main bhattkun to bhtattk kar bhi usi tak phaunchu.
Bhartiya No. 1 (Nationalist) 04 January 2011
काल प्रेमी हुआ
समय की मुठी से रिसती जाती ज़िन्दगी
टपकती बूंदें, एक -एक कर के
खाली हो जाता समंदर
बिछड़ते जाते संगी साथी
रह जाता अकेला काल, करता हाहाकार
उत्साह के पल ,उल्लास के पल
मुस्कुराती ज़िन्दगी
बातें करती आंखें
काल की ख़ामोशी की जुबान बनी जो
वो ज़िन्दगी विस्मृत न होने पाती
यादों में रहते ,खुद से बातें करते
काल की आंखें अक्सर नम हो जातीं
कब काल किसीका हुआ कहते थे लोग
पर ये क्या हुआ
काल भी मोही हुआ
देखो प्रेम- विछोही हुआ
Bhartiya No. 1 (Nationalist) 04 January 2011
जब जुबान नाकाम हो जाती है तोह आंसूं बोलते हैं
दर्द बर्दाश्त से बाहर हो जाये जब तब ये दर्द की गांठ खोलते हैं
आसान नहीं की इन्सान इस दुनिया में रहे और घायल न हों
और घाव भरने से पहले ज़रूरी है घाव होने का पता चलना
बस यही बताने का एक फ़र्ज़ निभाते हैं आंसूं
आंखें सहेजती हैं पानी खुद में ज़िन्दगी भर
बस उसी का एक क़र्ज़ चुकाते हैं आंसूं
जिंदा हैं हम और खुदा नहीं हुए अभी तलक
बस यही एक बात दिलाने को आँखों में आ जाते हैं आंसूं
geeta (chief accountant) 05 January 2011
Har khushi dil ke karib nahi hoti,
jindagi gamo se dur nahi hoti,
aye dost dosti ko sanjokar rakhna,
dosti har kisi ko nasib nahi hoti...
Bhartiya No. 1 (Nationalist) 05 January 2011
Wah Geetaji Wah!!!
सच कहूं तुमसे कहना ये सब बेकार है
की मुझको पता है की तुम्हारे बस की ये बात नहीं है दोस्त
होती ही है सच की खूबसूरती दिल में ,इसे पैदा करना किसी के बस की नहीं है
इसलिए भूल जाओ जो मैंने कहा, अपने झूठों में ज़िन्दगी जिओ ऐ दोस्त
दर्पण को पास मत रख दोस्त
दर्पण को तोड़ डाल ऐ दोस्त
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JEEVAN BEET CHALA
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2. jeevan beet chala
geeta (chief accountant) 12 January 2011
छिप छिप अश्रु बहाने वालों
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों!
मोती व्यर्थ लुटाने वालों!
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।
सपना क्या है? नयन सेज पर,
सोया हुआ आँख का पानी,
और टूटना है उसका ज्यों,
जागे कच्ची नींद जवानी,
गीली उमर बनाने वालों! डूबे बिना नहाने वालों!
कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है।
माला बिखर गई तो क्या है,
खुद ही हल हो गई समस्या,
आँसू गर नीलाम हुए तो,
समझो पूरी हुई तपस्या,
रूठे दिवस मनाने वालों! फटी क़मीज़ सिलाने वालों!
कुछ दीपों के बुझ जाने से आँगन नहीं मरा करता है।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर,
केवल जिल्द बदलती पोथी।
जैसे रात उतार चाँदनी,
पहने सुबह धूप की धोती,
वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!
चंद खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार कश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,
तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।
लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गंध फूल की,
तूफ़ानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफ़रत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!
खग उड़ते रहना जीवन भर
खग! उड़ते रहना जीवन भर!
भूल गया है तू अपना पथ,
और नहीं पंखों में भी गति,
किंतु लौटना पीछे पथ पर अरे, मौत से भी है बदतर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!
मत डर प्रलय-झकोरों से तू,
बढ़ आशा-हलकोरों से तू,
क्षण में यह अरि-दल मिट जाएगा तेरे पंखों से पिसकर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!
यदि तू लौट पड़ेगा थक कर,
अंधड़ काल-बवंडर से डर,
प्यार तुझे करने वाले ही देखेंगे तुझको हँस-हँसकर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!
और मिट गया चलते-चलते,
मंज़िल पथ तय करते-करते,
तेरी खाक चढ़ाएगा जग उन्नत भाल और आँखों पर।
खग! उड़ते रहना जीवन भर!
बेशरम समय शरमा ही जाएगा
बूढ़े अंबर से माँगो मत पानी
मत टेरो भिक्षुक को कहकर दानी
धरती की तपन न हुई अगर कम तो
सावन का मौसम आ ही जाएगा
मिट्टी का तिल-तिलकर जलना ही तो
उसका कंकड़ से कंचन होना है
जलना है नहीं अगर जीवन में तो
जीवन मरीज का एक बिछौना है
अंगारों को मनमानी करने दो
लपटों को हर शैतानी करने दो
समझौता न कर लिया गर पतझर से
आँगन फूलों से छा ही जाएगा।
बूढ़े अंबर से...
वे ही मौसम को गीत बनाते जो
मिज़राब पहनते हैं विपदाओं की
हर ख़ुशी उन्हीं को दिल देती है जो
पी जाते हर नाख़ुशी हवाओं की
चिंता क्या जो टूटा हर सपना है
परवाह नहीं जो विश्व न अपना है
तुम ज़रा बाँसुरी में स्वर फूँको तो
पपीहा दरवाजे गा ही जाएगा।
बूढ़े अंबर से...
जो ऋतुओं की तक़दीर बदलते हैं
वे कुछ-कुछ मिलते हैं वीरानों से
दिल तो उनके होते हैं शबनम के
सीने उनके बनते चट्टानों से
हर सुख को हरजाई बन जाने दो,
हर दु:ख को परछाई बन जाने दो,
यदि ओढ़ लिया तुमने ख़ुद शीश कफ़न,
क़ातिल का दिल घबरा ही जाएगा।
बूढ़े अंबर से...
दुनिया क्या है, मौसम की खिड़की पर
सपनों की चमकीली-सी चिलमन है,
परदा गिर जाए तो निशि ही निशि है
परदा उठ जाए तो दिन ही दिन है,
मन के कमरों के दरवाज़े खोलो
कुछ धूप और कुछ आँधी में डोलो
शरमाए पाँव न यदि कुछ काँटों से
बेशरम समय शरमा ही जाएगा।
बूढ़े अंबर से...
geeta (chief accountant) 14 January 2011