नई दिल्ली. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि शादी के बाद बेटियों के परिवार में उनके मां-बाप की दखलंदाजी उनके वैवाहिक जीवन में परेशानी का बड़ा कारण बन गया है।
जस्टिस कैलाश गंभीर ने एक व्यक्ति को निचली अदालत से मिले तलाक को बहाल रखते हुए यह टिप्पणी की है। इस व्यक्ति ने सास-ससुर के अक्सर होने वाले हस्तक्षेप के आधार पर तलाक मांगा था। हस्तक्षेप को पत्नी की क्रूरता मानते हुए तलाक दे दिया गया था। जज ने कहा कि पालकों को बेटी की समस्याओं के हल के लिए बिन बुलाया जज नहीं बनना चाहिए।
उसके दिमाग में विचार नहीं डालना चाहिए और न ही उसको अपने नियंत्रण में कर परिवार में झगड़े पैदा करने चाहिए। उनसे सलाह, समर्थन की अपेक्षा की जाती है और यह कि वे मौन रहकर अपनी शिक्षा-दीक्षा पर भरोसा करें। जस्टिस गंभीर ने कहा कि मौजूदा दुर्भाग्यपूर्ण मामला उदाहरण है कि याचिकाकर्ता के पालकों ने आग बुझाने की बजाय आग भड़काई। कोर्ट ने तलाक के खिलाफ व्यक्ति की पत्नी की अपील खारिज कर दी।
क्या बोले जस्टिस गंभीर
‘सभी अभिभावक अपनी बेटियों को पढ़ाते-लिखाते और मार्गदर्शन देते हैं और शादी के बाद उनको लेकर चिंतित रहते हैं। लेकिन उनके लिए यह जरूरी है कि वे एक रेखा खींचें क्योंकि उनकी भी बड़ी चिंता यही होनी चाहिए कि बेटी अपने पति के घर नए माहौल में खुशहाल हो। लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए कि बेटी के घर की हरेक गतिविधि की निगरानी की जाए।’