Jai Mata Ji to all the members of LCi
here's something ive written myself as ive observed closely what the feelings are like when someone goes through the most devilish time in his/ her life..and typically its the depiction of a MAN who goes through streams of endless trauma and pain.
अकेला क्या दुखी कम था "मैं"
जो जुड़ी मुझसे एक और "मैं"
"मैं" कहाँ अब बन गया था "तू"
और इस "तू - मैं" में मिला ना कोई क्लू
जिसके ख्वाब देखे सपने सजाये
वोह मेरे दर पर दरोगा साहब को ले आए
कभी जो कहती थी डार्लिंग प्यार से
अब बदला लिवा रही है वो मार-धाड़ से
दुखी, बेमन, बोझिल अंतरमन को संभाले
रिश्तों का उलझता ताना बना सुलझाते
थक चूका हूँ मैं अब इस बर्बादी से
तौबा करता हूँ मैं इस शादी से
बनाकर लाया था जिसको मेरे घर की लक्ष्मी
अब डालेगी डकैती बनकर कुलक्ष्मी
कहाँ छुटकर जाओं इस कोर्ट कचहरी से
लाइलाज बन चुकी हैं बीमारी अब 498 a
कोई समझाए मेरी प्राणप्रिय धरमपत्नी को
क्यों मेरे प्राणों की प्यासी बन चुकी हैं वो
सोचता हूँ क्यूँ कहा था कभी मैंने उसे ऐसा
की डार्लिंग क्यूँ खर्चती हो इतना सारा पैसा ?
मेरी आमंदनी है अट्ठन्नी और तुम खर्चती हो रुपईय्या
इतना कहने पर ही तुमने डूबा दी मेरे अरमानो की नईय्या
जो ना किया सितम उसपर तो मिली सज़ा फिर क्यूँ
"आप"," तुम" कहते करते कब बन गया " मैं" से "तू"
मुझे फूलों की माला पहनाने वाली, मेरे जीवन का प्यार
बना गयी 498a ,dv, crpc 125 अब मेरे जीवन का सार
क्यूँ जानकार सब बनती हैं अनजान
मुझसे ज्यादा तुझे है सच्चे इंसान की पहचान
plz do guide me if something hurted you in this iam still to learn alot in life.
Regards
Aishwarya Rajput