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Attached File : _20160928091836_330481704_decision.pdf
I am attaching my judgment by some modifications: as it is recent judgmnet and under appeal perios so change of name and place is there please ignore soon original will be posted........
the judgment is attached in pdf form and also in doc form it is copy pated below:
1 आप0प्र0क्र0ः-1670 /2009
न्यायालयः-श्री भवानी बर्मा, न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (म.प्र.)
आप0प्रकरण क्र.ः-1670 /2009
संस्थापन दिनांकः-06.10.2009
ब्ण्प्ण्ैण् छव ण्. 201-0032-2009
मध्यप्रदेश राज्य द्वारा आरक्षी केन्द्र,
कोतवाली, (म.प्र.)
---अभियोजन
//वि रू द्ध//
मनीष वेदी पुत्र मथुरा प्रसाद वेदी, उम्रु-44 वर्ष,
निवासी रघुनाथ नगर (म.प्र.)
----अभियुक्त
-निर्णय-
(आज दिनांक-23/09/2016 को घोषित)
1. अभियुक्त पर भा.द.सं. की धारा-498’ए’ एवं दहेज प्रतिषेध अधिनियम
1961 की धारा-4 के अंतर्गत आरोप है कि उसने दिनंाक 12.12.2008 से
लगातार रिपोर्ट दिनांक 25.08.09 के मध्य स्थान ओल्ड एलआईजी.। मिशन
कम्पाऊण्ड स्थित अभियुक्त का घर अंतर्गत थाना कोतवाली,
में फरियादी सविता के पति होते हुए दहेज की मांग को लेकर फरियादी
को शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित कर कू्ररता की तथा फरियादी
सविता या उसके माता पिता से दहेज में तीन लाख रूपये की प्रत्य
क्ष या परोक्ष रूप से मांग की।
2. प्रकरण में यह स्वीकृत तथ्य है कि अभियुक्त मनीष वेदी फरियादी
सविता का पति है। यह भी स्वीकृत है कि मनीष और सविता का विवाह
दिनांक 11.12.2008 को हिंदू रीति रिवाज से जामनगर से संपन्न हुआ था एवं
दिनांक 25.04.2009 को फरियादी सविता से थाना कोतवाली में सूचना
देने के पश्चात् जामनगर चली गई थी। यह भी निर्विवादित है कि अभियुक्त द्व
ारा दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यस्थापना हेतु एक आवेदन पत्र न्यायाधीश
के न्यायालय में दिनांक 27.07.2009 को प्रस्तुत किया। उक्त प्रकरण में
न्यायालय द्वारा अंतिम आदेश दिनांक 03.02.2010 को पारित किया गया।
जिसके अनुसार अभियुक्त के पक्ष में दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यस्थापना हेतु
डिक्री पारित की गई।
3. अभियोजन कथानक संक्षेप में इस प्रकार है कि फरियादी सविता
का विवाह दिनांक 11.12.2008 को मनीष वेदी से जामनगर से सपन्न हुआ
था। इसके बाद मनीष वेदी उसे सीधे
ले आया था और यहां उसने मेजर के पुत्र होने का फर्जी प्रमाणपत्र दिखाया,
जिसके तहत!
वह गैर कानूनी यात्राएं वगैर टिकिट करता था। उक्त पहचान पत्र में मनीष वेदी ने
स्वयं को के.सी.पुरी पुत्र आर.के. पुरी बताया था। आर.के. पुरी चेन्नई रेजीमेंट में
मेजर हैं इसी कार्ड के आधार पर उसने मोबाइल सिम आदि प्राप्त की, जबकि
अभियुक्त के वास्तविक पिता पिंडवाड़ा में निवास करते हैं तथा रिटायर्ड जीवन
व्यतीत कर रहे हैं। शादी के तुरंत बाद से मनीष उसे लेकर आ गया
जहां उसके परिवार का कोई भी सदस्य स्वागत हेतु नहीं था न ही कोई बाराती
तक साथ आया। आने पर फरियादी ने अभियुक्त के कहने पर
के लाल मेमोरियल कालेज में सहायक प्राध्यापक के पद पर
कार्य किया किन्तु अभियुक्त मनीष आये दिन पैसों के लिये उसके साथ मारपीट
कर प्रताडित करता था। रात्रि 08 बजे के उपरांत गाली गलौच करना रोज का
नियम बन गया। अभियुक्त तीन लाख रूपयों की मांग कर बात बात पर
फरियादी को मारना पीटना शुरू कर देता था जिससे तगं आकर दिनाकं 25.
04.09 को उसने कोतवाली में रिपोर्ट की और अपने मायके चली गई। किन्तु
उसके अभियुक्त मनीष उसे मोबाइल से धमकी देने लगे तथा गदं े मैसेज भेजे।
इसी बीच मनीष ने उसके विरूद्ध न्यायालय में प्रकरण प्रस्तुत कर दिया
तब फरियादी सविता दिनांक 22.08.09 को में आकर अपना दाम्पत्य
जीवन व्यतीत करने लगी। इसके बाद भी अभियुक्त मनीष द्वारा पैसों की मांग
की गई तब फरियादी ने कहा कि उसके पिता व भाई आयेंगे तो वही इस
संबंध में कुछ बतलाएंगे। दिनांक 25.08.09 को फरियादी के पिता व भाई उसके
घर आए तब मनीष ने पैसों के बावत् पूछा किन्तु पैसे नहीं लाने के कारण
मनीष ने उसे मारपीट शुरू कर दी तथा उसके पिता व भाई को गाली बकते
हुए घर से अपमानित कर निकाल दिया।
4. दिनांक 25.08.09 को फरियादी सविता ने पुलिस अधीक्षक
को एक लेखीय आवेदन दिया जिसके आधार पर थाना कोतवाली में अभियुक्त
के विरूद्ध अपराध क्रमांक 71/09 धारा 498ए भादस. सहपठित धारा 3/4
दहेज प्रतिषेध अधिनियम पर प्रथम सूचना रिपोर्ट लेख की गई और प्रकरण
विवेचना में लिया गया। दौरान विवेचना घटनास्थल का नक्शामौका बनाया
गया। फरियादी सविता एवं साक्षी अशोक पुरी, गीता पुरी, गिरवर सिंह
, मुन्नालाल के बताये अनुसार कथन लेख किये गये। लेपटाॅप व मोबाइल
जब्तकर जब्तीपत्रक बनाया गया। अभियुक्त को गिरफ्तार कर गिरफ्तारी पत्रक
बनाया गया। विवेचना उपरांत अभियोग पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया गया।
5. अभियुक्त ने अपराध करना अस्वीकार करते हुए निर्दोषिता का बचाव
लिया। अभियुक्त परीक्षण अन्तर्गत धारा-313 दं.प्र.सं. में व्यक्त किया गया कि
फरियादी के माता पिता के भडकाने व ईगो समस्या थी। फरियादी के घर में
नहीं रहना चाहती थी वह अभियुक्त को जामनगर या इंदौर में शिफ्ट कराना
चाहती थी और फरियादी और उसके माता पिता उसे अपने घर घर जमाई
बनकर रखना चाहते थे। दिनांक 19.08.2009 से 24.08.2009 तक वह इलाज
हेतु अमरावती गया था में मौजूद नहीं था। अभियुक्त ने उसे झूठा
फसाया जाना व्यक्त किया है। बचाव पक्ष की ओर से अभियुक्त मनीष वेदी
(ब.सा.1) एवं साक्षी महेन्द्र (ब.सा.2) ने बचाव साक्षी के रूप में कथन किये
हैं।
6. प्रकरण के निराकरण हेतु निम्नलिखित विचारणीय बिन्दु हैंः-
(1) क्या अभियुक्त ने दिनंाक 12.12.2008 से लगातार रिपोर्ट दिनांक 25.08.
09 के मध्य स्थान ओल्ड एलआईजी.। मिशन कम्पाऊण्ड स्थित
अभियुक्त का घर अंतर्गत थाना कोतवाली, में फरियादी
सविता के पति होते हुए दहेज की मांग को लेकर फरियादी को
शारीरिक एवं मानसिक रूप से प्रताड़ित कर कू्ररता की?
(2) उक्त दिनांक समय व स्थान पर फरियादी सविता या उसके
माता-पिता से दहेज में तीन लाख रूपये की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से
मांग की ?
’’’’’ सकारण निष्कर्ष ’’’’’
7. उपरोक्त विचारणीय बिन्दुओं के संबंध में आई साक्ष्य परस्पर अंतर्मिश्रित
होने के कारण साक्ष्य के दोहराव से बचने के लिये इनका निराकरण एक साथ
किया जा रहा है।
8. साक्षी सविता(अ.सा.1) का कहना है कि अभियुक्त के साथ
विवाह के बाद अभियुक्त उसे ले आया था जहां ससुराल पक्ष का कोई
भी व्यक्ति नहीं मिला था। अभियुक्त के कहने से उसने लाल कालेज में
सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्य किया। कुछ समय तक सब कुछ ठीक
चलता रहा किन्तु इसके बाद अभियुक्त आये दिन उससे तीन लाख रूपये की
मांग करने लगा और मांग को लेकर उसके साथ मारपीट करने लगा। साक्षी
का कहना है कि उक्त मारपीट से तंग आकर दिनांक 25.04.2009 को वह
थाना कोतवाली में रिपोर्ट करके अपने मायके चली गई थी किंतु इसके
बाद भी अभियुक्त उसे मोबाइल पर धमकी देता था और गंदे मैसेज भेजता था
इसके बाद अभियुक्त ने धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत
न्यायालय में एक आवेदन प्रस्तुत किया था तब दिनांक 22.08.2009 को वह
आ गई थी और अभियुक्त के साथ रहने लगी थी।
9. फरियादी का यह भी कहना है कि इसके बाद भी अभियुक्त उससे तीन
लाख रूपये की मांग करता था और उसके साथ मारपीट करता था तब उसने
अभियुक्त से कहा था कि जब उसका पिता व भाई आयेंगे तो वे इस संबंध में
बात करेंगे। दिनंाक 25.08.2009 को उसके पिता और भाई आये थे तब
अभियुक्त ने उनके साथ गाली गलौच की थी और उसे घर से भगा दिया था।
तत्पश्चात् उसने अपने पिता और भाई के साथ थाना कोतवाली में लेखीय
आवेदन प्रदर्श पी.1 दिया था क्योंकि अभियुक्त उसे दहेज की मांग करके
शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताडिक कर रहा था। साक्षी ने यह भी बताया है
कि प्रदर्श पी.1 के आवेदन के आधार पर अभियुक्त के विरूद्ध थाना कोतवाली
में प्रदर्श पी.2 की प्रथम सूचना रिपोर्ट लेख की गई थी और पुलिस ने अनीष
को गिरफ्तार किया था। रिपोर्ट के दूसरे दिन पुलिस ने घटनास्थल पर जाकर
नक्शामौका प्रदर्श पी.3 बनाया था और मनीष के घर से लेपटाॅप और मोबाइल
जब्तकर जब्तीपत्रक प्रदर्श पी.4 बनाया था। साक्षी गीता पुरी (अ.सा.2) ने
फरियादी के पूर्वोक्त कथनों का यथावत समर्थन किया है और बताया है कि
उसकी पुत्री फरियादी सविता ने उसे फोन पर जानकारी दी थी कि अभियुक्त
सविता से पैसों की मांग कर रहा है।
10. साक्षी मुन्नालाल (अ.सा.3) ने घटना के संबंध में कोई भी
जानकारी होने से इनकार किया है। अभियोजन द्वारा पक्षद्रोही घोषित कर
सूचक प्रश्न पूछे जाने पर भी साक्षी ने अभियोजन के मामले का समर्थन नहीं
किया है। इस प्रकार इस साक्षी के कथनों के आधार पर अभियोजन को कोई
बल प्राप्त नहीं होता है।
11. साक्षी सरोज पुरी (अ.सा.4) का कहना है कि उसने दिनांक 25.08.09 को
थाना कोतवाली मंे फरियादी सविताके आवेदन के आधार
पर अभियुक्त मनीष के विरूद्ध अपराध क्रमांक 71/09 धारा 498ए भादवि. व
3/4 दहेज एक्ट के तहत मामला पंजीकर कर प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रदर्श पी.2
लेख की थी एवं प्रकरण की विवेचना के दौरान फरियादी सविता साक्षी
अशोक पुरी, गीता, गिरवर व मुन्नालाल के कथन उनके बताये अनुसार लेख
किये थे। साक्षी ने दिनांक 26.08.09 को घटनास्थल का मौकानक्शा प्रपी.3
बनाना, दिनांक 28.08.09 को फरियादी सविता से साक्षी गिरवर एवं अलीम के
सामने एक लेपटाप काले रगं का तथा एक मोबाइल जब्तकर जब्तीपत्रक प्रपी.4
बनाना तथा दिनंाक 26.08.09 को आरोपी मनीष को साक्षीगण के समक्ष गिरकर
गिर.पत्रक प्रपी.6 बनाना बताया है।
12. बचाव पक्ष की ओर से साक्षी मनीष वेदी (ब.सा.1) का कहना है कि
जीवन साथी मेट्रीमोनियल डाॅट काॅम पर फरियादी सविता का प्रोफाइल आया
था। प्रोफाइल की सारी जानकारियों से संतुष्ट होने के बाद सविता के पिता
अशोक पुरी ने उसे मिलने के लिये सोहना बुलाया था तब वह वहां गया था
दोनों पक्षों की संतुष्टि के बाद दिनांक 11 दिसंबर 2008 को उसका विवाह
सविता से तय हो गया था। साक्षी का यह भी कहना है कि इस बीच सविता
के माता पिता उसे देखने आये थे तब वह में अकेला रहता था और
लाल कालेज मंे पढाता था। सविता के माता पिता ने कालेज में जाकर
भी उसके बारे में पता किया था। दिनांक 11.12.08 को उसका व सविता का
विवाह जामनगर से आदर्श विवाह के रूप में संपन्न हुआ था जिसमें उसके
परिवार के लोग भी शामिल हुए थे।
13. साक्षी मनीष वेदी (ब.सा.1) ने यह भी बताया है कि उसकी सगाई 13.
11.08 से पूर्व ही उसने स्वयं सविता का एडमीशन रामपुर में एम. फिल
ग्लोबल यूनिवर्सिटी में करा दिया था। शादी के बाद वे लोग नासिक,
त्रृयम्बकेश्वर घूमने भी गये थे। इस दौरान उनके बीच सब सामान्य था। सविता
के माता पिता के फोन आते थे कि में अकेले मत रहो परिवार के साथ
सोहना आकर रहो। दिनांक 12 अप्रैल 2009 को सविता की मां गीता पुरी
आई थी। दिनांक 23 अप्रैल 2009 को वह सविता की एम.फिल की
थीसिस जमा कराकर जबलपुर से घर वापिस आया तब तक गीता पुरी सविता
के सभी कीमती आभूषण चढावे का सामान वगैरह लेकर चली गई थी। इसके
बाद सविता दो दिन उसके साथ रही थी लेकिन अचानक उसका व्यवहार
बिल्कुल बदल गया था। सविता का कहना था कि उसने सविता की मां की
बात नहीं मानी है। छोटा शहर है यहां गोबर से लीपापोती करते हैं
उसका मन नहीं लगता। साक्षी ने यह भी बताया है कि दो दिन बाद दिनांक
25 अप्रैल 2009 को सविता भी अकेले जामनगर चली गई थी। उसने सविता
को वापिस बुलाने का काफी प्रयास किया। दिनांक 03.05.09 को वह सविता
को लेने जामनगर गया था जहां सविता के पिता ने उसके साथ गाली गलौच
और मारपीट की थी और उसे वापिस भगा दिया था उसके बाद भी एक दो
बार वह सविता को लेने गया था। दिनांक 20 जुलाई 2009 को उसने इस
संबंध में पुलिस अधीक्षक को आवेदन प्रदर्श डी.4 दिया था क्योंकि सविता
वापिस नहीं आ रही थी और उसे झूठे केस में फसाने की धमकी दे रही थी।
14. साक्षी मनीष वेदी (ब.सा.1) ने यह भी बताया है कि दिनांक 15.08.09
को उसके पेट में दर्द था डाक्टर ने बाहर दिखाने को कहा था तब वह
अमरावती चला गया था। दिनांक 19.08.09 से 24.08.09 तक डा. रामजी मिश्रा
के राजर्सली अस्पताल में भर्ती रहा था, 24 तारीख को डिस्चार्ज होने के बाद वह
25 तारीख को आ गया था। उसी दिनांक को शाम के समय उसके पास
एएसआई. सरोज पुरी का कोतवाली थाने से फोन आया कि उसको सुलह के
लिये बुलाया है जब वह थाना पहुंचा तो सरोज पुरी ने उसे गिरफ्तार कर
लिया था और उसका मोबाइल भी जब्त कर लिया था। साक्षी का कहना है कि
वह तीन दिन जेल में रहा था और जब वापिस आया था तो पुलिस वाले उसके
घर का ताला तोडकर घर का सामान ले गये थे। जिसके संबंध में उसने
टीआई. साहब को भी शिकायत की थी। उसने पुलिस अधीक्षक और अन्य
प्राधिकारियों को भी इस संबंध में शिकायत की थी जिसपर सरोज पुरी के
खिलाफ कार्यवाही की गई थी। साक्षी का कहना है कि उसने सविता के साथ
कोई मारपीट या प्रताडना नहीं की और न ही दहेज की मांग की थी बल्कि
शादी के समय उसने ही स्वयं पैसे खर्च किये थे।
15. साक्षी मनीष वेदी (ब.सा.1) ने अपने कथनो के समर्थन मंे फरियादी
सविता द्वारा थाना कोतवाली में की गयी रिपेार्ट दिनांक 25.04.09 प्रदर्श डी 5,
वर्तमान प्रकरण में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने से पूर्व दि0 24.06.09 को उप
निरी0 सरोज पुरी द्वारा परामर्श कार्यवाही हेतु उसे दिया गया सूचना पत्र प्रदर्श
डी 6, पुलिस अधीक्षक नागपुर को दिया गया लिखित आवेदन प्रदर्श डी 7,
थाना जामनगर में टीआई. को दिया गया लिखित आवेदन प्रदर्श डी.8, दिनांक
21.07.09 को पुलिस अधीक्षक नागपुर को भेजे गये आवेदन की प्रमाणित प्रति
प्रदर्श डी.9, नागपुर मे कराये गये ईलाज का पर्चा प्रदर्श डी.10, फरियादी
सविता को लेने के लिये नागपुर जाने के लिए से नागपुर और
जामनगर जाने आने की टिकिट प्रदर्श डी.11 लगायत प्रदर्श डी.15 की प्रमाणित
प्रतियां प्रस्तुत की गयी है।
16. साक्षी का कहना है कि सविता अपनी स्वयं की इच्छा से लाल
कालेज में पढाती थी जिसके लिये उसने सविता पर कोई दबाब नहीं बनाया
था लाल कालेज से सविता को दिया गया अनुभव प्रमाणपत्र की प्रमाणित
प्रति प्रडी.16, उसके द्वारा सविता को साथ रखने के लिये दिनांक 27 जुलाई
2009 को न्यायालय में हिंदू विवाह अधि0 की धारा-9 के अंतर्गत
प्रस्तुत प्रकरण की आदेश पत्रिकाओं की प्रमाणित प्रति प्रडी.17, आवेदन पत्र की
प्रमाणित प्रति प्रडी.18 प्रकरण में न्यायालय का आदेश दिनांक 03.02.10 की
प्रमाणित प्रति प्रडी.19, डिक्री की प्रमाणित प्रति प्रडी.20 प्रस्तुत की है। इसके
अलावा दिनांक 15 अगस्त 2009 को अभियुक्त का स्वास्थ्य खराब होने पर
से रेफर का पर्चा प्रडी.21, अमरावती से वापस आने के बाद चेकप कराने
के संबंध में इलाज का पर्चा दिनाक 18.10.09 प्रडी.22, से अपरावती आने
और जाने का टिकिट प्रडी.23 व प्रडी.24, 25 व 26, अमरावती में भर्ती रहने के
दौरान के प्रेस्क्रिप्सन की पर्चिया प्रडी.27 लगायत प्रडी.31, चिकित्सक द्व
ारा दिया गया प्रमाण पत्र प्रडी.32, संपूर्ण घटनाक्रम के संबंध में अभियुक्त द्वारा
जन सुनवाई के दौरान पुलिस अधीक्षक को पुनः दिया गया आवेदन पत्र
प्रडी.35, दिनांक 08.09.09, 15.09.09 को दिया गया आवेदन प्रडी.36 एवं प्रडी.37
प्राचार्य लाल कालेज को दिया गया आवेदन पत्र प्रडी.38, दिनांक 22.09.
09 को अपराध में खातमा कार्यवाही करने हेतु पुलिस अधीक्षक को दिया गया
आवेदन दिनांक 22.09.09 प्रडी.39, पुलिस महानिरीक्षक सागर को सविता के
माता पिता के विरूद्ध आपराधिक कार्यवाही करने हेतु दिनांक 29.09.09 को
दिया गया आवेदन पत्र प्रडी.40, सविता द्वारा प्रस्तुत किये गये प्रकरण में
समुचित जांच के बिना उसे गिरफ्तार करने के संबंध में उसके द्वारा दिये गये
आवेदन पत्र पर उप निरी. सरोज पुरी के विरूद्ध कार्यवाही करते हुए पुलिस
अधीक्षक द्वारा दिनांक 23.08.13 को किया गया आदेश कि सरोज पुरी
की सेवा पुस्तिका मंे निदंा के दडं से दंिडत करने का इदं्राज किया जाये, के
प्रतिवेदन की प्रमाणित प्रति प्रडी.41 है तथा आदेश प्रडी.42 के दस्तावेज भी
अभियुक्त ने अपने कथनों के समर्थन मंे प्रस्तुत किये हैं।
17. भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए किसी महिला के प्रति उसके पति
या नातेदारों द्वारा की गई कू्ररता को दंडनीय अपराध होना उपबंधित करती है।
उक्त धारा में दिये गये स्पष्टीकरण में क्रूरता शब्द को परिभाषित किया गया
है। जिसके अनुसार ’’क्रूरता से अभिप्रेत है-(ए) जानबूझकर किया गया कोई
आचरण जो ऐसी प्रकृति का है जिससे उस स्त्री को आत्महत्या के प्रेरित करने
की या उस स्त्री को जीवन अंग या स्वास्थ्य को (जो चाहे मानसिक हो या
शारीरिक) गंभीर क्षति या खतरा कारित करने की संभावना है या (बी) किसी
स्त्री को इस दृष्टि से तंग करना कि उसको या उसके किसी नातेदार को
किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की कोई मांग पूरी करने के लिये प्रपीड़ित
किया जाये या उस स्त्री को इस कारण तंग करना कि उसका नातेदार ऐसी
मांग पूरी करने में असफल रहा हो।’’ हस्तगत प्रकरण में धारा-498ए भादस. के
स्पष्टीकरण के द्वितीय खण्ड के अंतर्गत अभियुक्तगण पर दहेज की मांग करने
और उक्त मांग को लेकर फरियादी के साथ क्रूरता करने का आक्षेप है।
18. साक्षी सविता(असा01) ने बताया है कि वह अपनी शादी के
पहले भी स्वेच्छ्या से केन्द्रीय विद्यालय जामनगर और सिटी हायर
सेकेण्डरी स्कूल में शिक्षण का कार्य करती थी। साथ ही यह भी बताया है कि
अभियुक्त से अलग होने के बाद भी वह अध्यापन का कार्य करती है। स्वयं
साक्षी ने अपने मुख्य परीक्षण में बताया है कि अभियुक्त के कहने से वह
लाल कालेज में वह असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्य करती थी किंतु
साक्षी का ऐसा कहना नहीं हैं कि उक्त कार्य करने के लिए अभियुक्त ने उस
पर किसी भी प्रकार से दबाव बनाया था। यह उल्लेखनीय है कि साक्षी एम.ए.
बी.एड. कर चुकी उच्च शिक्षक महिला है जो कि अभियुक्त के साथ रहने से
पूर्व एवं पश्चात स्वेच्छ्या से अध्यापन का कार्य कर रही है, ऐसी दशा मे यह
नहीं माना जा सकता कि पैसों की मांग की पूर्ति के लिए अभियुक्त ने फरियादी
पर नौकरी करने के लिए किसी प्रकार का दबाव बनाया था या क्रूरता की थी।
स्वयं परिवादी की माॅ गीता पुरी (असा02) ने यह स्वीकार किया है कि स्वयं
अभियुक्त मनीष ने फरियादी से सगाई से पश्चात उसका दाखिला एम.फील के
कोर्स में अध्ययन हेतु कराया था,जो कि यह दर्शित करता है कि अभियुक्त
मनीष और फरियादी दोनों ही शिक्षण के क्षेत्र में कार्यरत थे और उच्च शिक्षा
प्राप्त करने हेतु प्रयासरत थे।
19. साक्षी सविता (असा01) एवं गीता पुरी (असा02) ने अपने कथनों में ऐसा
कहीं भी व्यक्त नहीं किया है कि अभियुक्त ने शादी से पूर्व या शादी के समय
किसी भी प्रकार के दहेज की मांग की थी अथवा ऐसी किसी मांग की पूर्ति
विवाह के समय की गयी थी। दोनों ही साक्षियों ने यह स्वीकार किया है कि
अभियुक्त और फरियादी के विवाह का संबंध मेट्रोमोनियल साईट डाले गये
उनके बायोडाटा से संतुष्ट होने के बाद प्रारंभ हुआ था। साक्षी गीता पुरी ने पद
क्रमांक-7 में बताया है कि उसने फरियादी के विवाह के संबंध मे दिये गये
विज्ञापन में यह स्पष्ट लेख कराया था कि विवाह के लिए ऐसे वर की
आवश्यकता है जो दहेज की अपेक्षा न करता हो। फरियादी सविता ने स्वीकार
किया है कि विवाह के बाद वह और मनीष त्रयम्बकेश्वर, नासिक और इंदौर,
देवास गये थे अर्थात् विवाह के ठीक बाद भी फरियादी और अभियुक्त का
वैवाहिक जीवन सामान्य था। उक्त से यह दर्शित है कि अभियुक्त द्वारा विवाह
के ठीक पूर्व विवाह के समय एवं विवाह के ठीक पश्चात किसी भी दहेज की
मांग नहीं की गयी थी।
20. फरियादी सविता ने बताया है कि अभियुक्त शादी के कुछ दिन बाद से
आये दिन तीन लाख रूपये की मांग करता था और उक्त मांग को लेकर
उसके साथ मारपीट करता था किन्तु फरियादी द्वारा यह स्पष्ट नहीं किया गया
है कि विवाह के कितने समय बाद से उक्त दहेज की मांग प्रारंभ की गयी थी।
दहेज की मांग और क्रूरता के संबंध में फरियादी ने कोई विनिर्दिष्ट समय,
स्थान दिनांक या कोई विनिर्दिष्ट घटना अनुक्रम अपने कथनों में नहीं बताया है
बल्कि दहेज की मांग करने और मारपीट करने का औपचारिक कथन मात्र
किया है। साक्षी गीता पुरी का कहना है कि शादी के बाद चार पाॅच दिन
सविता अभियुक्त के साथ रही थी उसके बाद अभियुक्त स्वयं सविता को लेकर
जामनगर आया था। आगे साक्षी का कहना है कि शादी के बाद वह अभियुक्त
और सविता के साथ रहने आयी थी। जिसके संबंध में साक्षी ने
स्पष्टीकरण दिया है कि सविता के पैर का आॅपरेशन हुआ था जिसकी सेवा
करने के लिए वह आयी थी और चार दिन रूकी थी। पद क्रमांक 18 में
साक्षी गीता पुरी का कहना है कि उस समय भी अभियुक्त और सविता के बीच
खटपट चल रही थी। पद क्रमांक 25 में साक्षी ने बताया है कि अभियुक्त ने
कभी भी उसके सामने सविता से दहेज की मांग नही की। साक्षी स्वतः व्यक्त
करती है कि रात के समय दोनों के बीच खटपट चलती रहती थी।
21. इस प्रकार साक्षी गीता पुरी के कथनो से प्रकट है कि वह शादी के ठीक
बाद अभियुक्त और फरियादी के साथ उनके घर मे आकर रही एवं दिनांक
25.04.09 जबकि फरियादी थाने में रिपोर्ट करके मायके जाना बताती है, उससे
ठीक पूर्व भी गीता पुरी फरियादी और अभियुक्त के साथ में रही थी।
यदि अभियुक्त द्वारा लगातार फरियादी से तीन लाख रूपये की मांग की जाती
थी और उक्त मांग को लेकर फरियादी की मारपीट करके उसके प्रति कू्ररता
की जाती थी तब ऐसा संभव नहीं था कि उसी घर मंे रहते हुए गीता पुरी के
ज्ञान में यह बात न आती क्योकि स्वयं इस साक्षी ने अपने कथनों में बताया है
कि सविता ने दहेज की मांग के संबंध मे उसे फोन पर सूचना दी थी। साथ
ही इस साक्षी के कथनों से यह भी स्पष्ट हेाता है कि अभियुक्त और फरियादी
के मध्य आपसी बातों को लेकर सामान्य अनबन या विवाद हुआ था।
22. दिनांक 25.04.09 को फरियादी द्वारा की गयी रिपोर्ट को यद्यपि
अभियोजन द्वारा न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत अथवा प्रमाणित नहीं कराया गया है
तथापि उक्त रिपोर्ट को स्वयं बचाव पक्ष ने प्रदर्श डी. 5 के रूप में प्रमाणित
कराया है जिसे फरियादी सविता ने थाना कोतवाली में रिपोर्ट करना स्वीकार
किया है कि प्रदर्श डी. 5 के अवलोकन से प्रकट है कि उक्त रिपोर्ट में
फरियादी ने थाने पर इस आशय की सूचना दी है कि वह अपनी मर्जी से अपने
माता पिता के घर पहनने के कपडे और आवश्यक दस्तावेज लेकर जा रही है
किन्तु उक्त रिपेार्ट में अभियुक्त द्वारा दहेज की मांग करने अथवा फरियादी के
साथ मारपीट करने का कोई भी उल्लेख नहीं है। फरियादी स्वयं शिक्षित
महिला होकर प्रोफेसर के रूप मे कार्यरत थी, ऐसी दशा में जबकि फरियादी
अपने जीवन से तंग होकर मायके जाना बताती है तब इसका कोई कारण नहीं
था कि फरियादी द्वारा थाना कोतवाली में अपने साथ घटित हुई घटना का
कोई भी उल्लेख न किया जाता।
23. अभिलेख पर उभय पक्ष के मध्य चले प्रकरण अंतर्गत धारा 9 हिन्दू
विवाह अधिनियम में न्यायाधीश मे पारित आदेश दिनांक 03.02.10
प्रदर्श डी 19 मौजूद है, जिसमें स्वयं न्यायालय द्वारा भी इस बात का स्पष्ट
उल्लेख किया गया है कि दिनांक 22.08.09 को उक्त प्रकरण न्यायालय के
समक्ष लंबित था किंतु न्यायालय के समक्ष फरियादी या उसके पिता ने मारपीट
के संबंध मे न तो कोई जानकारी दी और न तो कोई आवेदन प्रस्तुत
किया। यद्यपि उक्त तथ्य वर्तमान प्रकरण में विचारणीय बिंदुओ के संबंध में
प्रत्यक्ष रूप से सकारात्मक या नकारात्मक निष्कर्ष निकालने हेतु बहुत अधिक
महत्वपूर्ण नहीं है तथापि न्यायालय को इस पर तो विचार अवश्य ही करना
होंगा कि फरियादी के पास उसके साथ घटित घटना को उचित स्तर पर
उठाने अथवा सक्षम प्राधिकारी को सूचित करने का अवसर होते हुए भी
फरियादी ने ऐसा नहीं किया। फरियादी द्वारा पति के घर से जामनगर जाने के बाद भी जाम नगर मे भी किसी थाने पर या पुलिस अधिकारी को घटना के संबंध में जानकारी नहीं दी है।
24. इस बिंदु पर फरियादी को दौरान प्रतिपरीक्षण चुनौती दिये जाने पर पद
क्रमांक 12 में फरियादी बताती है कि अभियुक्त ने जान से मारने की धमकी दी
थी इसलिए डर के कारण उसने उक्त बाते रिपोर्ट मे नही लिखायी थी। आगे
साक्षी बताती है कि अभियुक्त ने उसके उपर सिल बट्टा फेका था इसी कारण
उसकी माॅ आयी थी। पद क्रमांक 14 में सविता ने बताया है कि दिनांक
25.04.09 को वह और मनीष दोनों कालेज पढ़ाने गये थे और वह काॅलेज से
सीधा थाने रिपेार्ट लिखाने चली गयी थी जहां से पुलिस वालों के साथ ही
अपने घर आयी थी और पुलिस वाले ही उसे जामनगर तक छोड़ने गये थे इस
प्रकार यदि रिपोर्ट लिखाने से ठीक पूर्व फरियादी अपने कालेज गयी थी और
फिर उसे पुलिस सहायता भी प्राप्त हो चुकी थी तब ऐसा नहीं माना जा सकता
कि फरियादी इस सीमा तक भयाक्रंात हो चुकी थी कि उसके साथ घटित
वास्तविक घटना का उल्लेख नहीं करती।
25. पद क्रमांक 19 में फरियादी सविता बताती है कि अभियुक्त द्वारा उसके
विरूद्ध धारा 9 के अंतर्गत जो मामला लगाया गया था उसका नोटिस मिलने के
बाद वह न्यायालय मे उपस्थित हुई थी किंतु साक्षी ने इस बात से इंकार किया
है कि उक्त प्रकरण की नोटिस की जानकारी होने के बाद उसने अभियुक्त के
विरूद्ध एफ.आई.आर. लिखायी थी। यह उल्लेखनीय है कि प्रदर्श पी.1 का
आवेदन पत्र दिनांक 25.08.09 को थाने पर दिया गया है जिसके आधार पर
प्रथम सूचना रिपेार्ट प्रदर्श पी.2 पंजीबद्ध की गयी है जबकि अभियुक्त द्वारा धारा
9 के अंतर्गत आवेदन प्रदर्श डी. 18 दिनांक 27.07.09 को न्यायालय मे प्रस्तुत
किया गया था, जिसमें उपस्थिति के लिए जारी सूचना पत्र प्राप्त हो जाना स्वयं
फरियादी ने स्वीकार किया है। जिससे यह परिलक्षित होता है कि उक्त प्रकरण
की जानकारी प्राप्त होने के बाद भी फरियादी द्वारा प्रदर्श पी.1 का आवेदन पत्र
थाने पर दिया गया था और इसके पूर्व दहेज की मांग या प्रताड़ना से संबंधित
कोई भी रिपेार्ट नहीं की थी।
26. बचाव पक्ष द्वारा साक्षी मनीष (बसा01) की साक्ष्य में दिनांक 19.08.09 से
24.08.09 तक उसके शहर से बाहर होने के संबंध में प्रदर्श डी.21 लगायत
प्रदर्श डी.32 के विभिन्न चिकित्सा संबंधी दस्तावेज और टिकिट प्रस्तुत किये
गये है किंतु उक्त पर्चे संबंधित चिकित्सक या तैयार करने वाले व्यक्ति द्वारा
प्रमाणित नहीं कराये गये हैं। दस्तावेजों पर मात्र मनीश वेदी नाम लिखे होने
के आधार पर उक्त दस्तावेजो की सत्यता प्रमाणित नही होती है। इसी प्रकार
अभियुक्त द्वारा थाना प्रभारी और पुलिस अधीक्षक को एवं नागपुर में
दिये गये आवेदन पत्र के आधार पर उसके विरूद्ध किये गये आक्षेप अप्रमाणित
नहीं होते तथापि उक्त आवेदन पत्रों से यह निष्कर्ष अवश्य निकाला जा सकता
है कि अभियुक्त को उसके विरूद्ध आपराधिक कार्यवाही संस्थित किये जाने की
प्रत्याशंका थी। जिस कारण उसमें उक्त आवेदन पत्र प्रदर्श डी 4,7,8,9 आदि
प्रस्तुत किये थे किंतु उक्त आवेदन पत्रों के आधार पर भी अभियुक्त को कोई
लाभ प्राप्त नहीं होता है।
27. आपराधिक प्रकरणों मे अभियोजन अपना मामला स्वयं संदेह से परे
प्रमाणित करना होता है, ऐसे प्रकरण मे बचाव पक्ष द्वारा साक्ष्य प्रस्तुति मे की
गयी चूक या लोप का अभियोजन को कोई लाभ प्रदान नहीं किया जा सकता
है। प्रकरण मे बचाव पक्ष का यह महत्वपूर्ण तर्क है कि विवेचक श्रीमती सरोज
पुरी द्वारा फरियादी सविता की रिश्तेदार होने के कारण त्रुटिपूर्ण विवेचना की
गयी है। इस संबंध मे इस साक्षी को दौरान प्रतिपरीक्षण सुझाव दिये जाने पर
साक्षी ने इस बात से स्पष्ट इंकार किया है कि फरियादी उसकी रिश्तेदार है।
चूंकि दिनांक 25.08.09 को श्रीमती सरोज पुरी महिला डेस्क प्रभारी थाना
कोतवाली थी अतः उनके द्वारा मामला पंजीबद्ध करना और उसमें विवेचना की
जाना दुराशय पूर्ण नही माना जा सकता है। यद्यपि यह सही है कि फरियादी
सविता उसकी रिपेार्ट दिनांक 25.08.09़ के ठीक बाद अभियुक्त को गिरफ्तार
करना बताती है जबकि प्रदर्श पी 6 के गिरफ्तारी पत्रक के अनुसार अभियुक्त
को दिनांक 26.08.09 को गिरफ्तार किया गया है।
28. साक्षी ने स्वीकार किया है कि उभय पक्ष के मध्य परामर्श कार्यवाही के
विफल होने के बाद ही प्रथम सूचना रिपेार्ट लेख की गयी थी और उक्त
परामर्श कार्यवाही के दौरान उसे अभियुक्त द्वारा पुलिस अधीक्षक आदि को दिये
गये आवेदन पत्रांे की जानकारी हो गयी थी। उक्त परामर्श कार्यवाही से
संबंधित कोई भी दस्तावेज अभियोजन की ओर से प्रस्तुत अथवा प्रमाणित नही
कराये गये है जिनके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि प्रथम सूचना
रिपेार्ट पंजीबद्ध होने के पूर्व पक्षकारो में मध्य वास्तविक विवाद की क्या
परिस्थितियाॅ थी तथापि प्रदर्श डी.6 के सूचना पत्र से दर्शित है कि दिनांक
24.06.09 को सूचना पत्र जारी कर दिनांक 07.08.09 को परामर्श हेतु उपस्थित
रहने के लिए विवेचक श्रीमती सरोज पुरी द्वारा नोटिस जारी किया गया था
चूंकि उक्त परामर्श की कार्यवाही वर्तमान प्रकरण की प्रथम सूचना रिपेार्ट प्रदर्श
पी.2 पंजीबद्ध होने से ठीक पूर्व की है एवं प्रदर्श डी 4,7,8 एवं 9 के आवेदन
पत्रों की जानकारी विवेचक को हो चुकी थी तब निश्चित रूप से उक्त
कार्यवाही में विचार मे लियंे गये बिंदु महत्वपूर्ण है, जिन्हें अभियोजन की ओर से
प्रमाणित नहीं कराया गया है।
29. अभियुक्त द्वारा वर्तमान प्रकरण में विवेचक श्रीमती सरोज पुरी द्वारा
त्रुटिपूर्ण कार्यवाही करने के संबंध में प्रदर्श डी 42 का दस्तावेज प्रस्तुत किया
गया है जो कि अभियुक्त के आवेदन पर विवेचक के विरूद्ध की गयी कार्यवाही
से संबंधित सूचना का अधिकार के अंतर्गत का आदेश है, उक्त प्रदर्श डी 42
का आदेश विवेचक के विरूद्ध की गयी विभागीय कार्यवाही में पारित आदेश है
जिसमें जाॅच उपरांत यह पाये जाने का उल्लेख है कि विवेचक श्रीमती सरोज
पुरी द्वारा वर्तमान प्रकरण में दिनांक 25.08.09 को अपराध क्रमांक 601/09 पर
प्रथम सूचना रिपेार्ट पंजीबद्धकर अभियुक्त को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था
जबकि उसके पूर्व दिनांक 27.07.09 को अभियुक्त ने दाम्पत्य संबंधों की पुन-
सर््थापना हेतु न्यायालय में आवेदन लगाया था विवेचक द्वारा इस प्रकरण में
तलाशी के दौरान विधि उपबंधों का पालन न किये जाने और बिना जाॅच के
अभियुक्त को तत्काल गिरफ्तार किये जाने के संबंध मे उपेक्षा पायी जाने के
कारण उसे निंदा के दण्ड से दण्डित किया गया है। इस प्रकार यद्यपि प्रदर्श
डी. 42 का आदेश इस न्यायालय पर किसी भी प्रकार से बंधनकारी नहीं है
तथापि उक्त से यह स्पष्ट होता है कि विवेचक द्वारा विधि के प्रक्रियात्मक
उपबंधों का पालन न करते हुए अभियुक्त के विरूद्ध कार्यवाही की गयी थी।
30. बचाव पक्ष की ओर से कई न्यायदृष्टांत प्रस्तुत किये गये है जिनमे से
वर्तमान प्रकरण से सुसंगत ‘‘न्याय दृष्टांत गनानाथ पटनायक वि. उड़ीसा
राज्य (2002)1 एस.सी.आर.845‘‘ प्रस्तुत किया गया है जिसमें यह अवधारित
किया गया है कि अभियुक्त द्वारा पीडित के साथ कू्ररता किये जाने के संबंध में
विश्वसनीय साक्ष्य विद्यमान नहीं है, वहां धारा 498ए भादस के अंतर्गत
दोषसिद्धी नहीं की जा सकती है।
31. न्यायदृष्टांत ‘‘शैलेन्द्रसिंह वि. म.प्र.राज्य 2005(दो) एम.पी.एल.जे.
224‘‘ में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा यह अवधारित किया गया है कि पति
अथवा नातेदारो द्वारा किया गया प्रत्येक हमला या प्रताड़ना धारा 498ए भादसं
के अंतर्गत क्रूरता की परिधि में नहीं आती है, किसी आशय की अवधारणा न्याय
दृष्टांत ’’सरला प्रभाकर विरूद्ध महाराष्ट्र राज्य 1990 सी.आर.एल.जे.
407’’ मंे भी की गयी है। इसी प्रकार बचाव पक्ष की ओर से प्रस्तुत न्याय
दृष्टांत ‘‘रीता शर्मा एवं अन्य वि. मध्यप्रदेश राज्य एवं अन्य (2014)1 एमपी.
डब्ल्यू.एन.86‘‘ में यह अवधारित किया गया है कि धारा 498क एवं दहेज
प्रतिषेध अधिनियम के अंतर्गत अपराध में विनिर्दिष्ट तिथि समय व स्थान प्रथम
सूचना रिपेार्ट मे लिखित नहीं किया गया, ऐसी रिपोर्ट अभिखण्डित किए
जाने योग्य है।
32. पूर्वोक्त न्यायदृष्टांत मे अवधारित विधि के सापेक्ष वर्तमान प्रकरण की
परिस्थितियों का अवलोकन करें तो स्पष्ट होता है कि फरियादी सविता त्रिवेदी
ने अभियुक्त द्वारा उससे दहेज की मांग करने एवं प्रताड़ित किये जाने के संबंध
मे कोई भी विर्निर्दिष्ट घटना दिनंाक, समय, स्थान या घटना अनुक्रम नहीं
बताया है बल्कि दहेज की मांग और कू्ररता को औपचारिक कथन मात्र किया
हैं। सर्वप्रथम अवसर पर दिनांक 25.04.09 को और उसके बाद उपलब्ध अवसरो
पर भी फरियादी ने अभियुक्त के विरूद्ध केाई रिपेार्ट न करते हुए, अभियुक्त द्व
ारा न्यायालय में धारा 9 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुति के
पश्चात प्रथम सूचना रिपेार्ट दिनांक 25.08.09 थाने पर लेख करायी थी।
फरियादी की माॅ गीता पुरी ने उसके समक्ष दहेज की मांग या क्रूरता का कोई
कथन नहीं किया है। अभियुक्त द्वारा विवाह के समय विवाह के पूर्व एवं ठीक
पश्चात दहेज की मांग किये जाने का मामला अभियोजन का नही है इसके
विपरित स्वयं गीता पुरी (असा02) ने यह स्वीकार किया है कि अभियुक्त ने
उसकी शादी के पूर्व खरीददारी के लिए चैक के माध्यम से रूपये दिये थे।
जिसके संबंध मे दिया गया स्पष्टीकरण कि मनीष ने उसे दिये गये पैसे चैक
के माध्यम से लौटाये थे, स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है।
33. फरियादी का कोई भी मेडीकल रिपोर्ट अथवा किसी स्वतंत्र साक्षी की
समर्थनकारी साक्ष्य भी अभिलेख पर नहीं है। प्रदर्श पी.1 के आवेदन पर के
अनुरूप दिनांक 25.08.09 को अभियुक्त द्वारा फरियादी की मारपीट किये जाने
का कोई भी कथन फरियादी सविता ने अपने न्यायालयीन कथनों में नहीं किया
है। अभियोजन साक्षी गिरवरसिंह जिसे फरियादी अपना मूह बोला भाई बताती है
उसे अभियोजन की ओर से परीक्षित नही कराया गया है, जहां तक अभियुक्त
द्वारा फर्जी पहचान पत्र तैयार करना और उसका दुरूपयोग करने का प्रश्न
है यह बिंदु न तो वर्तमान प्रकरण मे विचारणीय है और न ही इस संबंध में
अभियुक्त पर कोई आरोप विरचित किया गया है, अतः इस पर विवेचना किया
जाना औचित्यहीन होगा।
34. पूर्वोक्त के आधार पर अभियोजन यह प्रमाणित कर पाने मंे असफल रहा
है कि अभियुक्त ने दिनंाक 12.12.2008 से लगातार रिपोर्ट दिनांक 25.08.09 के
मध्य स्थान ओल्ड एलआईजी.। मिशन कम्पाऊण्ड स्थित अभियुक्त का घर
अंतर्गत थाना कोतवाली, में फरियादी सविता के पति
होते हुए दहेज की मांग को लेकर फरियादी को शारीरिक एवं मानसिक रूप से
प्रताड़ित कर कू्ररता की तथा फरियादी सविता या उसके माता पिता से
दहेज में तीन लाख रूपये की प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मांग की। फलतः
अभियुक्तगण मनीष वेदी पुत्र मथुरा प्रसाद वेदी को भा.द.वि. की
धारा 498’ए’ एवं दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा-4 के आरोप
से दोषमुक्त किया जाता है।
35. अभियुक्त के जमानत एवं मुचलके भारहीन किये जाते है।
36. अभियुक्त प्रकरण के अनुसंधान अथवा विचारण के दौरान अभियुक्त
दिनांक 26.08.09 से 29.08.09 तक न्यायिक निरोध में रहा है। तत्संबंध में
धारा-428 दं.प्र.सं. का प्रमाण पत्र पृथक से प्रकरण में संलग्न किया जाये।
निर्णय खुले न्यायालय में घोषित किया गया।
मेरे निर्देशन में टंिकत किया।
न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी,
(म.प्र.) (म.प्र.)
23.09.16 23.09.16