दोनो हाथ जोड़ के प्रणाम करता था कभी
मिलाने को एक हाथ ले रहा हूँ मैं
पगो वाली पग डण्डी पगो से विछुड गई
चलने को अब फुटपाथ ले रहा हूँ मैं
पूरब का सूरज ना पूरब मे डूब जाए
पश्चिम की सभ्यता को साथ ले रहा हूँ मैं
औ बचपन मे नहाता था बारिश मे नंगा मैं
मुझे क्या पता था
फ्रेंच बाथ ले रहा हूँ मैं॥
श्रधेय दादा ओम प्रकाश आदित्य जी की रचना!
मोर करते हैं शोर ढोर खुले चरते है चोर भी स्वतंत्र डोलते है मेरे देश में;
आत्मा का अनमोल धन बेच कर लोग सोने की दुकान खोलते हैं मेरे देश में,
जनता को न्याय की तुला पे नेता तोलते है नेताओं को सिक्के तोलते है मेरे देश में;
गधे गद्दीयों पे बैठे काग वाँचते पुराण उल्लू अंग्रेजी बोलते हैं मेरे देश में!
Trouble Logging in? Try following the given steps -
1. Visit your inbox to find a confirmation mail from LAWyersClubIndia.
2. Click on the confirmation link and confirm your signup