मुंबई के उपनगर ठाणे, भिवंडी और कल्याण तेजी से बड़े शहरों में परिवर्तित हो रहे हैं, जहाँ ट्रैफिक की समस्याएं, ऊँची इमारतें, मॉल और महंगे स्कूल दिखाई देते हैं। इन इलाकों में उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात से आए लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। हर तरफ निर्माण कार्य जारी है - फ्लाईओवर, हाईवे, मेट्रो और गगनचुंबी इमारतें बन रही हैं।
ठाणे की लोकसभा सीट को शिवसेना का गढ़ माना जाता है, जो आनंद दिघे के प्रयासों का परिणाम है। 1967 में शिवसेना ने ठाणे नगरपालिका चुनाव में 17 सीटें जीतकर राजनीतिक सफलता प्राप्त की थी। दिघे, ठाणे के बेताज बादशाह थे और जनता के बीच लोकप्रिय थे। उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन जनता के साथ उनका भावनात्मक जुड़ाव था। उनके जनता दरबार के कारण उन्हें समर्थन और सम्मान मिला।
आज ठाणे में चुनाव की लड़ाई दिघे और बालासाहेब ठाकरे की विरासत के बीच है। एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे की शिवसेना से राजन विचारे दोनों दिघे के शिष्य थे। एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने नरेश म्हस्के को उम्मीदवार बनाया है। यह सीट शिंदे के लिए प्रतिष्ठा और गौरव का सवाल है।
ठाणे और कल्याण में चुनाव महत्वपूर्ण हैं। कल्याण में शिंदे के बेटे डॉ. श्रीकांत शिंदे मैदान में हैं। यहां शिवसेना की वैशाली दरेकर राणे उम्मीदवार हैं। कल्याण में श्रीकांत के पक्ष में माहौल है, लेकिन महंगाई का मुद्दा भी अहम है। सुनील, जो शहर में ऑटो चलाते हैं, महंगाई को कम करने वाली पार्टी को वोट देने की बात करते हैं।
भिवंडी में एनसीपी के सुरेश महात्रे (बाल्या मामा) का मुकाबला भाजपा के मोरेश्वर पाटिल से है। बाल्या मामा जनता में लोकप्रिय हैं जबकि पाटिल का जनता से जीवंत संपर्क नहीं है।
कुल मिलाकर, ठाणे और आसपास के इलाकों में महंगाई, बेरोजगारी और स्थानीय उम्मीदवारों के खिलाफ नाराजगी जैसे मुद्दे प्रमुख हैं। ठाणे में चुनाव चिन्ह 'धनुष बाण' बालासाहेब और दिघे की स्मृतियों से जुड़ा है, जो शिंदे को फायदा पहुंचा सकता है। लेकिन युवाओं की पहली पसंद 'मशाल' है। शिंदे के लिए यह चुनाव एक अग्निपरीक्षा है।