नवभारत टाइम्स के सौजन्य से-
यही लगा कि आज तक किसी ने पुलिस को ठीक से समझा ही नहीं। हो सकता है कि ऊपर से देखने पर लगे कि पुलिस वाले भ्रष्ट हैं, गरीब रेहड़ी वालों से पैसे ऐंठते हैं, मगर यह कोई नहीं सोचता कि अगर वे वाकई ईमानदारी की कसम खा लें तो इन गुमटी-ठेलेवालों का होगा क्या? पुलिस का ये 'मिनी भ्रष्टाचार' तो लाखों लोगों के लिए रोजगार की वैकल्पिक व्यवस्था है। जो सरकार इतने वर्षों में इन लोगों के लिए काम-धंधे का बंदोबस्त नहीं कर पाई, उनसे दस-बीस रुपये लेकर पुलिसवाले ही तो इन्हें संभाल रहे हैं।