जस्टिस दलवीर भंडारी तथा दीपक वर्मा ने योजना आयोग से कहा कि वह बीपीएल लोगों की संख्या 36 फीसदी मानने के पीछे अपने तर्कों का खुलासा करे। शीर्ष कोर्ट ने आश्चर्य जताया कि सरकार के इस दावे के पीछे क्या तर्क है कि देश में पर्याप्त खाद्यान्न उपलब्ध है जबकि हजारों लोगों की मौत भूख से हो रही है।
बेंच ने ये सख्त टिप्पणियां तब कीं जब अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल मोहन पराशरन ने कहा कि सरकार कुपोषण की समस्या को दूर करने में जुटी है। साथ ही जनवितरण प्रणाली को बेहतर बनाया जा रहा है। कुपोषण भी कम हो रहा है।
इस पर बेंच ने पूछा कुपोषण मिटने से क्या मतलब? इसका उन्मूलन होना चाहिए। शीर्ष कोर्ट ने अखबारों की रिपोर्टो के हवाले से कहा कि देश में बंपर फसल हुई है। गोदामों में क्षमता से अधिक अनाज है। निस्संदेह हालात काफी सुखद हैं। लेकिन लोगों को इससे क्या लाभ मिला? इसका क्या उपयोग हुआ? बेंच ने कहा, यहां दो भारत नहीं हो सकते। कुपोषण से निपटने के हमारे पूरे रुख में जबरदस्त विरोधाभास है। कुपोषण को पूरी तरह से खत्म किया जाना चाहिए।
शीर्ष कोर्ट ने ये तीखी टिप्पणियां पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की जनहित याचिका की सुनवाई करते समय कीं। उसने हरेक राज्य में बीपीएल परिवारों की संख्या 36 फीसदी तय करने के पीछे योजना आयोग के तर्को को जानना चाहा। शीर्ष कोर्ट ने जानना चाहा कि 1991 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर 2011 के लिए यह प्रतिशत कैसे तय कर लिया गया।
दैनिक आय के आधार पर भी सवाल
शीर्ष कोर्ट ने कहा कि योजना आयोग ने शहरी इलाकों के लिए 20 रुपए और ग्रामीण इलाकों के लिए 11 रुपए प्रति व्यक्ति दैनिक आय को बीपीएल श्रेणी का आधार बनाया है। बेंच ने इस आधार पर भी सवाल उठाए।
प्रमुख राज्यों में भारतीय खाद्यान्न निगम के भंडारों में अनाज का स्टॉक (1 अप्रैल 2011 की स्थिति)
राज्य कुल अनाज (लाख मीट्रिक टन में)
दिल्ली 1.24
हरियाणा 20.59
हिमाचल प्रदेश 0.11
जम्मू-कश्मीर 0.49
पंजाब 65.68
राजस्थान 15.82
उत्तरप्रदेश 24.97
गुजरात 5.35
मध्यप्रदेश 5.97
छत्तीसगढ़ 12.71
झारखंड 0.79